Monday, December 3, 2012

मेरी कविता ....

एक बार फिर जन्म लेगी
मेरी कविता,
तेरे ज़ेहन के गलीचों में,
कुछ फुर्सत के लम्हों में,
कुछ मूक बधीर
तेरे निर्बल अरमानो में,
हो सके तो तब जा के
तुम फिर पढ़ना इसे ओर पूछना खुद से
तुमने क्या खोया क्या पाया ..?
अपनी बेजार रक्त रंजित निगाहों में,
सिवाय सूनेपन ओर अकेलेपन के
अपने ही मकानों में,
शायद फिर तेरे रूठे कमल भी
चल पड़े,
मिलन लिए मेरे भावनाओं संग
लिखने कच्चे पक्के शब्दों से 
एक जुझारू ज़िंदगी की दास्ताँ
नाम लिए होगी  "मेरी कविता"  ..!

Sunday, December 2, 2012

छुपा रखा हूँ ...

शफ़क ना पढ़ ले कोई चेहरे से मेरे,
इसलिए अपना तस्वीर छुपा रखा हूँ,
 
सिने में उफनता सागर
आँखों में सेलाब छुपा रखा हूँ,
 
एक हादसे से सनी छोटी सी ज़िंदगी का
लम्बा सा बयान  छुपा रखा हूँ,
 
थोड़ी सी बिखरी स्याही पन्नो के
कुछ टूटे अधूरे शब्द छुपा रखा हूँ,
 
बिकते घोंगो की बस्ती में 
एक सिप मोती का छुपा रखा हूँ  
 
धुएं हुए सपने संग सही मायने में
कल की बेहतरी का आग छुपा रखा हूँ !!

Friday, November 30, 2012

हम बदल गये ...

वो, वो जो थे वही है, शायद हम बदल गये है,
फर्क इतना रहा सिर्फ दर्मिया हमारे
हम ठोकरें खा के गिड़ गये है,
ओर वो मेरा हाँथ थामे संभल गये है,
कौन बतायेगा उनको किनके खाव्ब बुझे
किनके जल गये है,
किनके राह मंजिलों से पहले बदल गये है,
फर्क इतना रहा सिर्फ दर्मिया हमारे
हम मोहब्बत के आग में झुलस गये है,
वो नदी बनके दूर निकल गये है,
वो, वो जो थे वही है, शायद हम बदल गये है !!

Wednesday, November 28, 2012

मेरे यादों में ...


हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,

सूरत देख कर आईनों में जो सोचते है हम खुश हैं
वही फुर्सत में बैठ कर खुद को ढूंढता क्यूँ नहीं है कोई,

इक उम्र गुज़र गई जिनको ख्वाइशों के घर बनाने में
वही तुफानो में घर के छत को आजमाता क्यूँ नहीं है कोई,

हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,

हम तलाश नहीं है किसी के पर खाव्बों के ताबीर ज़रूर होंगे
अपनी ना सही मेरे ख़ुशी के लिए उन खाव्बों में झांकता क्यूँ नहीं है कोई,

अरसों से भेज रखी है जिनको अपने गुजारिशों के ख़त
ज़माने से नज़र छुपा के उसको पढता क्यूँ नहीं है कोई,

अपना हाल बताने ना जा तुम किसी गरीबखाने पे
मेरे हाल ही जानने मेरे इस सुने घर आता क्यूँ नहीं है कोई,

हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,

Sunday, November 25, 2012

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई ...

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई,
तू सितारों के संग बसता क्यूँ नहीं हरजाई !


रोज रोज तुमको देखा करू फिर पास से,
ऐसा कुछ तू क्यूँ करता नहीं सोदाई ,

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई ...

मासूम सा तेरा दिल महके मेरे चाँदनीओं  में 
में बिखर जाऊं होके मदहोश फिर तेरे खुशबुओं में

ऐसा कुछ तू क्यूँ करता नहीं सोदाई,

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई,
तू सितारों के संग बसता क्यूँ नहीं हरजाई ! 

हर रात हंसी हो फिर
हर रात करू फिर सुबहों से लड़ाई,

कभी तो तू देरी से आ
कभी तो लू में उनसे हंस के विदाई,

रोज रोज तुमको देखा करू फिर पास से
ऐसा कुछ तू क्यूँ करता नहीं सोदाई,  

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई...

बना लेना मेरी तस्वीर तुम
हर रोज सज के इतना आया करू,

तेरे वास्ते हर लाज ओ शर्म 
अपने घर के खूंटे पे टांग आया करू,

में बाबरी तेरी तू बाबरा  मेरा बन जाऊं
ऐसा कुछ तू क्यूँ करता करता नही सोदाई, 

मेरी चाँद मुझसे कल कहने आई,
तू सितारों के संग बसता क्यूँ नहीं हरजाई !!

Saturday, November 24, 2012

हर रात मुझसे उलझता है क्यूँ कोई ...




हर रात मुझसे उलझता है क्यूँ कोई,
मेरी नींदे छीन के अपने होने का एहसास देता है क्यूँ कोई ! 
 
है जब पता उनको मेरे बेचैनियों का,
फिर मेरा चैन लेता है क्यूँ कोई ! 
 
में ढूंढ़ता हूँ हाथों के लकीरों में बार बार नाम जिनका,
जाने क्यूँ ..जान के ये, अपनी पहचान छुपता है क्यूँ कोई !
 
हर रात मुझसे उलझता है क्यूँ कोई,
मेरी नींदे छीन के अपने होने का एहसास देता है क्यूँ कोई !
 
खामोशियों में मेरे आते है जिनके ख्याल अक्सर,
पास होक भी वही  दूर होने का एहसास जताता है क्यूँ कोई !
 
भटक के कहाँ आ निकला हूँ जहाँ अपना दीखता नहीं है कोई,
फिर हँस के मुझसे मेरे गुमनामी का पता पूछता है क्यूँ कोई !
 
आ गई है जिनके बदहाली में,घर के दीवारों पे बहुत सारे दरारें,
ऐसे में बिना बुलाये उन दरारों से झांकता है क्यूँ कोई !
 
हर रात मुझसे उलझता है क्यूँ कोई,
मेरी नींदे छीन के अपने होने का एहसास देता है क्यूँ कोई !!

मेरे घर ने मेरी पहचान की है ...




मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है

सुलगता रहा दिल देख के ये मेरा
पत्थरों की इस हवेली ने मेरे चुप्पी की क्या शान दी है

आगजनी की खबर कल अख़बारों में पढ़ा था मैंने
दिल जला था मेरा बस्तियाँ किसी ओर ने फूंक दी है

मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है !!

हुआ क्यूँ नहीं कल कोई बारिश
बचा क्यूँ नहीं घर का कोई कोना
उड़ते राखो ने .. उन चोखटों से ..हवाओं संग ये पैगाम दी है

इस कदर सावन ने बर्बादी को क्यूँ अंजाम दी है ?
कौन है कुसूरवार इसका ..?
किसने पनपते सपनो को बेबसी से जान ली है ?

मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है !!

Friday, November 23, 2012

दिल ने कुछ मेरे मन को कहा ...

दिल ने कुछ मेरे मन को कहा
नंगे पावँ मत चलो..
मन के मंदिर की सीढियों पे,
जेठ की तपिश की तरह अब ये जमी जलता है,

मंदिर के दीवारों के बीच रहते है

सिर्फ ओर सिर्फ पत्थर के मूरत
कौन कहता है ..
इन दीवारों में रब बसता है,

खुद को कर के देख कभी ओर अकेला

वक़्त रहते फिर सब पता चल जायेगा,
जूठी स्वांग के पीछे भागती ये दुनिया
बोरियों में भर के तुझे ही
तेरे तनहाइयों पे गाली दे जायेगा,

ख़ैर तुम क्यूँ करोगे..

मन मेरे बातों पे यकीं
तुझे तो ख्वाबों की दुनिया की आदत है
तेरे लिए जीवन तो ऐसे ही चलता है,

जिसको तू रखता है

अपने मन मंदिर में रब बना के
वो रब की तरह तो क्या
इंसा की तरह भी तेरे दिल के लिए कुछ नहीं कर पाता है,

सच बोलू तो मन मेरे तू दुनियावालों के तरह हो गया है,

जिसको देख कर दिल को बहुत दर्द होता है.. बहुत दर्द होता है !!

आना जरुर ...

आना जरुर साँझ होने से पहले
मेरे दिल के चैन...

थोड़ी बहुत सपने हैं..

जो मैंने खुले आँखों से देखे है तेरे पूछे बिना
वही सारे एक एक कर के तुझे बताने है ..

कुछ हाल अपने शक्ल सा

कुछ हाल तेरे शक्ल सा बनाने हैं ..
खुशियों की बातें करके
अपने सारे गमो को रुलाने हैं..

हो सके तो आज अपनी परछाइयों

को मत भेजना..
मुझे तेरे जिस्म को छू कर
तेरे रूह को अपने होने का एहसास दिलाने हैं..

अपने थक से गये सांसों को

तेरे जिस्म के भींगी खुशबू से नहाने हैं..
टांगे खीच के किस्मत का
तेरे बाँहों में गुम हो जाने हैं..

बस तुम ज़रूर आना..

ओर कुछ नहीं लिख सकता हूँ यहाँ
क्यूँ की मुझे सिर्फ एक तेरे एहसासों को
अपने शब्दों से जगाने हैं !!

मेरे नज़र तू मत तरस ..

मेरे नज़र तू मत तरस यार के दीदार के लिए,
तेरे दर्द का एहसास तेरे दिल के सिवा किसी ओर क्या होगा,

ये चट्टान की बनी दुनिया पत्थर की मूरत को सिर्फ पूजते है,

इसे मासूम दिल का ख्याल क्या होगा,

करवटों में तू चाहे कितनी भी काट ले राते,

बिस्तर पे पड़े सिलवटों की खबर बिछड़े यार को क्या होगा,

सुबह गिले तकिये को धुप रोज की तरह धो देगी,

लापरवाह साँझ को फिर तेरे रात का खबर क्या होगा,

सुना है बेरुखी में लोग छोटी छोटी बातों का फ़साना बना देते है,

फिर ऐसे में मेरे ढाई अक्षर प्रेम का क्या होगा,

चल दिल मेरे तू छुप जा परिंदों की तरह किसी ओर के घोंसले में,

कहीं पेड़ों पे तूफान आ गया तो तेरा क्या होगा,

यार जो हो गई है खफ़ा तेरी वफाओं की वजेह से,

कहीं सवाल कर देगी तो उसके ख़ुशी के लिए, तेरा जवाब क्या होगा !!

मुरीदो की साँझ ...

मुरीदो की साँझ
दिन के उजाले में हो जाने दे,
रात के बेसुद आलम का क्या पता..
वरना सुबह सबेरे
सूदखोर सूरज फिर आयेगा,
कोरियों की भाव में
मेरे चाहतों का मोल लगायेगा,  
ओर..
में टटोलते रह जाऊंगा
बस अपनी खाली जेबों को
जहाँ मुझे तेरी यादों के सिवा
कुछ नहीं मिल पायेगा,
थोड़े थोड़े बह कर हवाएं भी
फिर मुझे इशारा करेगी,
लहरें साहिलों से टकरा कर
तब बहुत शोर करेगी,
में भटकता तब भी रह जाऊंगा रेतों पे अकेला तेरे यादों में..
ओर वाजुदों की आँखे मेरे पावं के निशा ढूंढ़ती रह जाएगी  !!

प्यार की सरसराहट ..

तुम लगा लो पंख अपने होसलों में,
में तुम्हे अपने पास बुलाना चाहता हूँ,

तेरे प्यार की सरसराहट को अपने गलियों से,

घर में उतारना चाहता हूँ,

जोगन के रूप में न कटे तेरी ज़िंदगी,

इसलिए अपनी राधा बनाना चाहता हूँ,

में कोई कृष्णा नहीं जो मुरली बजाऊंगा,

पर अपने एहसासों से दिल का दर्शन कराना चाहता हूँ,

तू सोच ले अगर थोड़ा ओर वक़्त चाहिए तो,

में पतझर की तरह सावन का ओर इंतजार करना चाहता हूँ,

बस तू साथ दे दे मेरे प्यार का,

हम दो जिस्म एक जान है ये सिर्फ तुमको ही नहीं
दुनिया के हर शय को बताना चाहता हूँ !!

मेरी कविता की प्रेणना ..

मेरी कविता की प्रेणना तेरी चाहतों से शुरू होती है,
जैसे फूलों की खुशबू हवाओं से हुजुर होती है,

जब भी थामा इन हाथों में कोरे पन्नो को,

वो तेरे खिस्सों से महशूर होती है,

चलते चले जो तुझे पाने को तेरी राहों में,

वो मंजिल सिर्फ कदमों से दूर होती है,

यूँ तो खिलते है फूल बागों में बहुत,

पर राधे-कृष्ण के चरणों में सिर्फ मोहब्बत ही वजूर होती है,

नाम लेके जीती थी मीरा,

पर मूरतों में राधा ही महशूर होती है,

ये विडंबना है मेरी भी ज़िंदगी का,

जिससे सबसे पास होना था वही सबसे दूर होती है !!

दिल ने लगाये थे जो पंख ..

दिल ने लगाये थे जो पंख
वो किसी नादा परिंदे से मांगे थे,
ज़िंदगी ने जो थामा था डोर
वो उलझे रिश्ते के धागे थे,
सारे के सारे राज खुल गए
वक़्त के एक ठोकर में
जो बरसों से होठों पे इस दिल ने छुपाये थे,

बड़ा नादा दिल है मेरा

ना जाने किस बात पे शोर करता है,
एक पल की ज़िंदगी के लिए
ना जाने क्यूँ हज़ार मोत मरता है,

में चुप रहूँगा यहाँ तो ख़ामोशी कही जाएगी,

जो हंस दूंगा तो आवारगी समझी जाएगी,
बता फिर आज क्या हाले बया करू दिल
जो तेरे साथ हर किसी की दिल में उतर जाएगी,
उतर जाएगी ....

सज़ा रखे है सपने ..

कोई देहलीज नहीं लांघी
अपनी देहलीज बनाने के लिए,

फिर भी आँखों में सज़ा रखे है सपने

अपने घरोंदों में जाने के लिए,

मजबूरियों का हर बारिश गिरा है

हमारे सपनो के छतों पे,
शायद अपने घरोंदो के
मजबूती की नीव बताने के लिए,

हो चला है है यकीं जो हम तेरे बाँहों में है

तो हमारा हर सपना बना है पाने के लिए,

यूँ ही तू भी साथ देते रहने ऐ मोहब्बत के " रसूल "

अब तक तेरी इबारत की है
शायद ऐसी ही ज़िंदगी पाने के लिए ..!!

मिलती क्यूँ नहीं ... ?

हैवानियत के घिनोनी छत के निचे
क्यूँ रखी है इतनी टुकरों में भर के भूख की बोरियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को  
वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ, 


हम बन्दे वही है हम जात भी वही है 
जिस हर एक को रब रसूल ने बनाया
फिर किसी के हिस्से क्यूँ आई है
ये ऐस ओ आराम जिंदगी,
किसी के हिस्से गरीबी की गालियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को  
वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ,


बेबसी का बिछोना पेट का चोका बना है 
नींद माँ सी प्यारी धुप जल्लाद बाप बना है 
किया नहीं कोई भी गुनाह मैंने 
फिर भी न जाने क्यूँ लोगों को लगती है 
गुनाहों सी मेरी चाहत की सिसकियाँ,
मिलती क्यूँ नहीं हर एक को   वो दाल की पानी गैहूँ की रोटियाँ,

तू मेरी कवियत्री ...

जीवन पथ में भावनाओ संग करे ऐसी हम मैत्री,
की में बन जाऊं तेरा कवी तू मेरी कवियत्री !

जो में लिखू कभी फिर तेरे बारे में
तो तू शब्द बन जाये,
जो तू कभी लिखे तो
में छंद बन जाऊं,
लिपट किसी मुर्शिद के गले से
जब हम दो निकले
हीर के अशारों के तब कद्र बढ़ जाये !

सुन ये उम्र दराज़ हो जाये हर प्रेमी की
इतनी प्यारी शिद्दत खुदा में भी आ जाये,
चाँद फिर कभी आसमा में ना निकले
ओर चकोर के हर विरहा की दुःख दूर हो जाये,
कुछ ऐसा मिलन धरती पे इन दोनो का हो जाये, 
की एक प्रेम इतिहास नया सा रच जाये,
जो में लिखू कभी तेरे बारे में
तो तू वो सब बन जाये !!

एक साया है तू ...

एक साया है तू 
मेरा साथ क्या देगा 
जब ज़रूरत होगा मुझे अंधेरों में 
तू खुद का पता खो देगा  ..
में ढूंढता रहूँगा 
फिर भी तुझको दर व दर 
हर दिये के रौशनी में
इस आस से  
कहीं पे किसी ल़ो से 
कहीं तो तू जुड़ा होगा ..
जब ढूंढ़ लूँगा तुझे कहीं  
पता नहीं उस वक़्त 
फिर तू मुझे क्या देगा 
हँसा देगा या फिर रुला देगा..
सोचता हूँ बार बार
यही
उठा के एक सवाल जेहन से
एक साया है तू 
मेरा साथ क्या देगा
जब ज़रूरत होगा मुझे अंधेरों में 
तू खुद का पता खो देगा  !!

मादकता ...!!

तुम मादक मिर्गनी हो 
मेरे योवन के जंगल का 
कैसे में तुमको पाऊँ प्रिय्वंद्नी
प्रेम में अग्नि का 
तू कस्तूरी की दीवानी 
में तेरे अधरों की खुशबू का 
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी 
श्रींगार से योवन का ..

चंचल चितवन तेरे नैन नशीले
मुख सजा होठ है गिले 
पीले पीले गिले गिले 
महुआ सी तेरे आलिगन की खुशबू 
खींचे है मोहे बिन डोर ओ संगनी 
महक में योवन का 
बता में कैसे बंध जाऊं 
मोह तेरे मिर्गनी
प्रेम में अग्नि का  
तू निर्मल काया है जल का
में एक पत्थर हूँ तेरे धारा का 
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी 
श्रींगार से योवन का ..

तेरे गोरी बाँहों की नाजुकता 
मन में छूने को उठाये उत्सुकुता 
ले कदम मेरे बढ़ गए है उस ओर
जिस ओर जाने को दिल नहीं रुकता 
कैसे में रोकूँ इन सब से खुद को कादम्व्नी 
चाहत में तेरे सांसों का  
बता में कैसे बंध जाऊं 
मोह तेरे मिर्गनी
प्रेम में अग्नि का  
तू निर्मल काया है जल का
में एक पत्थर हूँ तेरे धारा का 
कैसा होगा फिर मिलन ओ हंसनी 
श्रींगार से योवन का ..

लिख दू ...

एक पंक्तियों में ग़ज़ल लिख दू 
हाल अपनी मोहब्बत उसमे सब सरल लिख दू 
में खुद को ठोस चट्टानों सा 
अपनी खानुम को पानी सा तरल लिख दू 
वो बहती जाये बहती जाये 
निराधार नदी सा 
ओर में उसमे खुद को 
बाधाओं का कमल लिख दू 
मोहब्बत के बाज़ारों में 
अपनी आसुओं का हर असल लिख दू 
लौट के जो आई दुआएं 
उनकी चोखट से उनकी फज़ल लिख दू 
लिख दू हर मुमकिन जो हो 
एक बार एतबार के नामो के 
खुद को खेतों का फसल लिख दू 
काट ना सके फिर उसको ऐसा कोई गरल लिख दू  .. !!

पुष्पगंधा ..

अपने सजनी के गजरे के लिए पुष्प गंधा ना ला सकने की व्यथा ...

इन चन्द शब्दों को गजरा समझ कर
बालों पे सजा लेना पाकी
सजन तेरा मिथय्भ्र्मी आवारा है
मुआ पुष्पगंधा ना ला सका
जिस पे तेरा हिर्दय हारा है,
सुन पाकी माँगा था मैंने जाके बागों से
तेरे जूरे की सुन्दरता 
हंसी उड़ा के ना जाने की उन सब ने
भवरों संग की थी मेरी अनादरता
फिर क्रोधित मन पुष्पों संग
भवरों से उलझ उलझ ये बोला
तेरा पुष्प-भंवर प्रेम छ्नीक नश्वर सारा है
मेरी तो मनगंधा पाकी
शाश्वत मेरी अहंकारा है
जा तन लग के कुटुम्ब अजय ने
अपना सारा जीवन वारा है
ऐसा हो अगर प्रेम तुम दोनों का
सम्मुख मेरे लोकित कर
वरन व्यर्थ की मूर्खता पे
सोच के मेरी बातों से सारा जीवन
खुद को क्रोधित कर
खाली हाँथ भेज मुझको
अब जीवन भर हर्षित कर
इतना कह में चला आया पाकी
अपनी ये व्यथा तुझको समझाने,
संग तेरे गजरे की लाज बचाने  ... !!

तन्हा नहीं हूँ में ..

कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ..
जिंदा लाशों के कद्र नहीं जहाँ
उन मुर्दा भावनाओं के ढ़ेर में है,
रिश्ते नदारत है शाखों पे उल्लू बैठा के
ऐसे अग्निपथ के डगर में है,
कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ..

रक्त-रंजित लथ-पत मेरी काया

पुकारती जिन अपनों को
वो भी खोये कानो से लगे हेड फ़ोनों की धुन में है,
में थक के बैठ चूका हूँ अब चंद भेरवों के पास
क्यूंकि आज बाकि वफ़ा की कद्र सिर्फ इनके दिल में है,
जेबों को खंगालती दुनिया बहुमंजिला सभ्यता से
बुजुर्गों के बदुआओ के गर्ग में है
कहने के लिए तन्हा  नहीं हूँ में .. क्यूंकि
मेरा घर शहर में है ...!!

Thursday, February 16, 2012

ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है .... !!


ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है,
की तेरी जुदाई ने सनम मेरी जान ली है,
कितनी मासूम है ये तेरे होने का एहसास,
जैसे रूह ने एक ओर जिस्म ढूंढ़ ली है,   
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है ...

कैसे जिऊँ तेरे हंसी से होके दूर,

जब इस पैर ने एक जमी ढूंढ़ ली है,
क्यूँ पड़ा है इस वक़्त पे तेरे चिलमनो का पेहरा,
जब मेरी नज़र ने जिन्दगी की सकल ढूंढ़ ली है,
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है...

तू छुपते छिपाते चाँद के तरह आजा,

देख मैंने तेरे लिए एक रात ढूंढ़ ली है,
में पूछूँगा न तेरे से कोई सवाल,
आज इस कदर तेरे जुदाई में मैंने हर जवाब ढूंढ़ ली है
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है .... !! 

Friday, February 10, 2012

काश अगर में कोई पेड़ बन पाता ...!!



काश अगर में कोई पेड़ बन पाता,
वो भी किसी राहों का,
फिर हर गुजरने वाले रहगुजर को अपनी छाओं में बुला के सीतलता देता,
हर भूखे को अपने फल देके तृप्ति देता,
सुकून भरी साँसे दे के पत्तों से उसके चेहरे पे मुस्कान बिखेरता, 
देते देते एक दिन इतना सब कुछ अपना दे देता,
की  पतझर में खड़े होकर, हर पत्ते गिरा के भी अपनी शाखों से,
उसे भी मुस्कुराने का सलाह देता,
टूटता कभी नहीं किसी वक़्त की आँधियों से,
पर सब कुछ खो के भी पतझर के हाथों,
बसंत आने पे अपने दामन को फिर से पत्तों से सजा लेता !! 
 

 

Thursday, February 9, 2012

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... !!




मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके लफ़्ज़ों की हर खूबसूरती चुराके फिर आईने में तू सजना,
तेरे आँखों में भले ही काजल हो पर अपने होठों को मेरे रंग से ही रंगना,
कोई हवा आके छेड़े तेरे खुले गेसुओं को तो उनको मेरा नाम ले के रोकना,
रख कर मेरे चाहतों जुरा गेसुओं पे अपने ख्यालों से फिर उन्हें ढकना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... 

कहीं तेरा आँचल अल्हर बनके सरके तेरे कांधों से तो उनको टोक देना,
ये हक उनका है ये कह कर बस आँचल को छोड़ देना,
थोड़ा शर्मा के गर जो बिंदिया बिखरने लगी तेरे माथे से,
तो उनको चाँद की ओर दिखा देना,
तोड़ लाना आसमा से उस चाँद को ओर फिर अपनी मांग को सजा लेना,
गर जो कहीं आसमा कुछ बोले तो उसको मेरा नाम बता देना,
रखना ख्याल मेरे आवारगी का तू सनम, ओर यूँ ही हमेसा बस  मेरे गजलों से सजना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके हर खूबसूरती चुराके लफ़्ज़ों से फिर आईने में तू सजना,

मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... !! 

फ़कत फूल की हर खुशबु.....!!


फ़कत फूल की हर खुशबु.. इश्क की तरह तेरे जिस्म से महकेगी,

मत पूछना तू - तब,
मेरे बेहिसाबी जिस्म की आलम की बात,
जब, बिन पिये शराब की तरह.. ये आशिक तेरे जिस्म की खुशबु में झूमेगा, 
नहा लेना तू जाके किसी भी समुंदर के लहरों में उस वक़्त,
गर यकी न हो मेरे आवारगी पे तो,
फिर उन लहरों से बाहर आके देखना,
रेत बनके ये आशिक "ही" तेरा कदम चूमेगा  !!

फ़कत फूल की हर खुशबु.....


ना तमनाओ से, ना सितारों से सजाना अपना आँचल,

बस थोड़ा टेहर कर ओर कर लेना इंतजार मेरा,
एक दुल्हन की तस्वीर दिल में रख कर आऊंगा,
ओर सारी कायनात को जमी पे उतारूंगा,
बोलूँगा फिर उसे खुदा से .. सजा दे मेरे इस चाँद को,
तेरे चाँद को बादलों में कहीं छुपाऊँगा,

मत देखना तू किसी हेरत भरी नज़रों से हमें तभी,

बस साथ देना थोड़ा ओर जरा... तेरा हर सपना वादों का सच कर के यूँही दिखाऊंगा  !!  

फ़कत फूल की हर खुशबु.....!!

Friday, February 3, 2012

मत छूना मेरे परछाइयों को ....!!



मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ ,
सांसे तेरी मेरी छुअन से बहकने लगे तो रोक लेना,
भर के बाँहों में तुझको आज के बाद बस तेरा होना चाहता हूँ,  

मत छूना मेरे परछाइयों को,

में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ !!

ना आज के बाद तेरी कोई शाम होगी,

ना ही कोई रात होगी,
मेरे मोजुदगी का ऐसा चमक तेरे जिस्म पे होगा,
हर पल उसके रौशनी में तेरे लिए बस बहार होगी,
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ,

मत छूना मेरे परछाइयों को ....!!


मिलना ऐसे मुझसे शर्मो हया का हर आँचल उतार के,

मिला ना हो जैसे आज तक कोई सावन बहार से,
पिला देना अपने लबो से हर वो जाम,
जिसके लिए बरसों से घूमता रहा है,
ये आवारा हर दिन सुबह शाम,
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ,

मत छूना मेरे परछाइयों को ....!!

Wednesday, January 25, 2012

रज रज के माँ तुझे सलाम करू ..!!



रज रज के माँ तुझे इस कदर सलाम करू,
तेरे तीन रंगों में हर सांसे क्या जां भी तमाम करू,
मिले जब कभी फिर ज़िंदगी, माँ - तो बस तेरे मिट्टी का अरमान करू,

रज रज के माँ तुझे इस कदर सलाम करू ..!!


नाचू गाऊ मदहोश होके तेरे आँचल तले,

पर सीना ताने बस आज तेरा
ही शंख नाद करू,
याद करू, तेरे हर वीर सपूतों को
ओर झुक के उनके सहादत का मान करू, 

रज रज के माँ तुझे इस कदर सलाम करू ..!!


दे गोरव आशीष इतना की जो भी देखे तुझे बुरी नज़र से,

उसे इस दुनिया के नकस्से से बर्बाद करू,
गर जो बढ़ाये हाथ दोस्ती का उसको तेरे बेटे की तरह मान करू,  

रज रज के माँ तुझे इस कदर सलाम करू ..!!

Sunday, January 22, 2012

तेरी हर जुस्तुजू ....!!




तेरी हर जुस्तुजू, तेरी हर गुफ्तुगू तेरे न होने के बाद याद आती है,
है मेहरवा तेरी मोहब्बत इन यादों पे इतनी,की हर याद तेरी आँखों के बारिश के बाद आती है !!   

सोचता हूँ फिर, काश ख़त्म हो जाये ये यादों का सिलसिला,
आ जाये कहीं से वो पास मेरे ओर कहे मुझसे दिल मिला,
पर होता नहीं है ये,
आँखे खुलने के बाद ख्यालों से हर बार वो चाँद के पार होती है,
  
तेरी हर जुस्तुजू, तेरी हर गुफ्तुगू तेरे न होने के बाद याद आती है,

है ये गुज़ारिश मेरे हमनवा तुझसे इतना,
हो कभी बारिश तेरे आँगन में तो भींग के देखना,
तुझे छूने वाली हर बूंद में मेरे अश्कों के होने का एहसास होगा,
तेरे जिस्म पे गिर के सब कुछ खोने के बाद भी, उन बूंदों को तेरा ही प्यास होगा, 
अजीब है ये तेरी मोहब्बत, जो तुझसे दूर होकर भी तुझ पे मिटने की ख्याल लाती है

तेरी हर जुस्तुजू, तेरी हर गुफ्तुगू तेरे न होने के बाद याद आती है,
है मेहरवा तेरी मोहब्बत इन यादों पे इतनी,की हर याद तेरी आँखों के बारिश के बाद आती है !!

Thursday, January 19, 2012

साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे ...!!



साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे,
खामोशियों का सफ़र देके साथ चल न सके जो,
वो आज मेरे ख़ामोशी पे अपने आँखे मूंद रहे थे ...!!

जो राहे वफ़ा दी उसने हम पहुँच न सके उस मंजिल पे,

बीच राहों में छोड़ कर साथ मेरा, वो आज मेरे राहों का पता पूछ रहे थे,

वक़्त के हाथों लुट के खता उसने की या मैंने की, ये तो मालूम नहीं,

पर रो के वो भी आज अपने हालतों पे कहीं, उस खताई का वजेह ढूंढ़ रहे थे,

अब तक अकेले चलते चलते थका नहीं था में, उनके प्यार के सफ़र में,

पर दूर होके आज भी 
मुझसे वो मेरे आराम के लिए कोई घर ढूंढ़ रहे थे,

साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे,

खामोशियों का सफ़र देके साथ चल न सके जो,
वो आज मेरे ख़ामोशी पे अपने आँखे मूंद रहे थे ...!!

Wednesday, January 18, 2012

में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा ...!!



तू सनम पाकीजगी कर, में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा,
हवाएं कितनी भी बहे बेरुखियों का तेरे आँगन में,
दरवाजा बनके उन्हें में रोकता रहूँगा ..!

कमजोर पल भी आयेंगे तेरे आँगन के पेड़ के शाखों पे,

पर उन शाखों को सलामत रखने के लिए, में हमेसा पत्ते बनके गिरता रहूँगा,

भर जायेगा जब कभी वक़्त की तेज़ बारिशों से तेरा आँगन,

में हर बारिशों के बाद आग बनके (सूरज) आसमा में निकलता रहूँगा,

जब कभी आये याद मेरी अपने आँगन में आके देखना,

में तुलसी बनके, तेरे आगन के मंदिर में तुझसे मिलता रहूँगा,

यूँ तो हमें वक़्त ने जुदा कराया है,

पर जुदा होके भी उस खुदा के पास,
नम आँखों से तेरी सलामती की दुआ करता रहूँगा ..  

तू सनम पाकीजगी कर, में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा,

हवाएं कितनी भी बहे बेरुखियों का तेरे आँगन में,
दरवाजा बनके उन्हें में रोकता रहूँगा ..!!

Saturday, January 14, 2012

आज फिर एक तेरी तस्वीर मिली किताबों में....!!



आज फिर एक तेरी तस्वीर मिली किताबों में,
सोचा उसे देखकर कुछ ओर पन्ने पलट डालू हुस्न के तेरे हिसाबों में,
यूँ तो निकला था कुछ शब्द ढूंढने तेरे हुस्न के सदके के तारीफों में,
पर वही किताबों के हर सफे पे पाया झुकता सारी कायनात को तेरे सायों में, 
आज फिर एक तेरी तस्वीर मिली किताबों में....!!

जब कुछ न मिल पाया तो आँखें बंद कर ली ओर तेरे चेहरे को नजरों में रख ली,

देख के हेऱा हुआ जब पाया बंद आँखों के निचे चाँद को तेरे फरमाए में, 

आज फिर एक तेरी तस्वीर मिली किताबों में....!!


तू है कितनी हसी ये तो जानता हूँ में,

होगा न तुझसा कोई ओर ये भी मानता हूँ में,
पर ये दिल सोचता है आज हर शय झुक जाये तेरे कदमो में,
सावन भी तेरे आगे फीका पर जाये जब भी रखूं तुझको निगाहों में,

ऐ मेरे मालिक बस तू कर दे करम इतना ,

हो ना कोई इस ज़मी खुबसूरत मेरे सनम जितना,
बस आ यहाँ तू ओर दे सुकू बोल के ये,
बना ना कोई हुस्न तेरे सनम सा जमानो में,

आज फिर एक तेरी तस्वीर मिली किताबों में....!!

Thursday, January 5, 2012

मैं तेरा दीवाना ... !!



मैं तेरा दीवाना हूँ, मुझे दीवाना ही रहने दे,
तू निकल चाँद बनके वहाँ,
ओर मुझे चकोर बनके यहाँ ही रहने दे,
चाहतें कितनी भी खामोश हो जाये चाहे वफ़ा की गलियों में,
बस मेरी आवाज़  को अपने सिने में ही रहने दे, रहने दे ...!

मैं तेरा दीवाना हूँ, मुझे दीवाना ही रहने दे......


तुझे खुदा ने तराशा होगा बड़ी ही गुरवत से,

बहारों ने सवारा होगा बड़ी ही नेमत से,
सोचता हूँ में आज कहीं मदहोश वो थे..
या मदहोश में रहा हूँ तेरे हुस्न के यादों में,
ये तो मालूम नहीं,
हो चाहे बात कुछ भी... बस मुझे अपने हुस्न में मदहोश रहने दे ...!

मैं तेरा दीवाना हूँ, मुझे दीवाना ही रहने दे......


देखा हूँ जब से तुझे हर शय में तुझको ही याद किया,

तेरी यादों में राते क्या नींदे भी बर्बाद किया,
वो तो किस्मत ही ओर है,
जो आज नाम की दरमियाँ बन गई है बीच हमारे,चल जाने दे  ..
होने को कुछ भी हो जाये बस हमें अपनी मुलाकात में ही रहने दे ...!

मैं तेरा दीवाना हूँ, मुझे दीवाना ही रहने दे......!!

Sunday, January 1, 2012

जो मिला निशा वो खला है और.... !!



हूँ में अश्कों के सायों में फिर भी दिल ए गुमा है उनपे और,
कहने को तो हर बातें नज़रों से केह दिया जो न केह सका वो जुव़ा है और !!

गुरवत की संजीदगी समेट कर जो तीरे ए नज़र चलाया,

लाल रंग से भींगा वो हाले ए दिल मेरा है और,
यूँ तो तेरे हुस्न के तरकश में खंजर है बहुत,
पर जिससे घायल हुआ मेरा कद तेरा वो कमा (कमान) है और,

तू क्या है ओर किसको है तेरी जरुरत,

पाया है जिसने तुझको उसका हाले दिल बया है और,
यूँ तो तेरी हर तारीखे खली है मेरे चाहतों के पन्नो में,
ढूंढा जब कुछ पाने के लिए उन पन्नो से, जो मिला निशा वो खला है और,

हूँ में अश्कों के सायों में फिर भी दिल ए गुमा है उनपे और,

कहने को तो हर बातें नज़रों से केह दिया जो न केह सका वो जुव़ा है और !!