Friday, November 23, 2012

पुष्पगंधा ..

अपने सजनी के गजरे के लिए पुष्प गंधा ना ला सकने की व्यथा ...

इन चन्द शब्दों को गजरा समझ कर
बालों पे सजा लेना पाकी
सजन तेरा मिथय्भ्र्मी आवारा है
मुआ पुष्पगंधा ना ला सका
जिस पे तेरा हिर्दय हारा है,
सुन पाकी माँगा था मैंने जाके बागों से
तेरे जूरे की सुन्दरता 
हंसी उड़ा के ना जाने की उन सब ने
भवरों संग की थी मेरी अनादरता
फिर क्रोधित मन पुष्पों संग
भवरों से उलझ उलझ ये बोला
तेरा पुष्प-भंवर प्रेम छ्नीक नश्वर सारा है
मेरी तो मनगंधा पाकी
शाश्वत मेरी अहंकारा है
जा तन लग के कुटुम्ब अजय ने
अपना सारा जीवन वारा है
ऐसा हो अगर प्रेम तुम दोनों का
सम्मुख मेरे लोकित कर
वरन व्यर्थ की मूर्खता पे
सोच के मेरी बातों से सारा जीवन
खुद को क्रोधित कर
खाली हाँथ भेज मुझको
अब जीवन भर हर्षित कर
इतना कह में चला आया पाकी
अपनी ये व्यथा तुझको समझाने,
संग तेरे गजरे की लाज बचाने  ... !!

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