Monday, March 25, 2013

जब झाँकती है वो


एक भोली सी
ज़िद्द ही उनका मेरे
जीने का सबब है
जब झाँकती है वो
दरारों से मेरे घर को
फिर उनका उन दरारों
घर कह जाना ही गज़ब है

उलझ जाता हूँ मैं
बारिशों में टपकते
अपने छतों को देख कर 
उनका उन टपकते पानियों को
हिज़ाब कह जाना ही गज़ब है

ज़मीन पे बिखरा
लेटा रहता हूँ
अक्सर उनके यादों में
उनका मिट्टी के इस
बिछोने को ख्वाबगाह
कह जाना ही गज़ब है

तिलस्मी किवारें
मेरे घरों की
जब हवाओं के संग
शोर करती है
फिर उनका उन शोरों को
मेरी आह
कह जाना ही गजब है 

भूख से चीत्कारता
मन मेरा
जब गैरों को
अन्न के टुकड़े बाँटता है
फिर उनका मेरे इस
रहमदिली को
प्यार कह जाना ही गज़ब है

अपने आस्तीन के
खाली जेबों के सहारे
मुफ्लिशी मैं रोज
बिफर रहा हूँ मैं मगर
उनका उन खाली जेबों में
मेरे इश्क़ का दीनार
भरा है
कह जाना ही ग़जब है !!

Friday, March 22, 2013

कटिंग धाड़ ...

गोय्ठों की छाप से
धूमिल दीवारों की सफेदी
अधकीचरों शब्दों से
जैसे किसी ने सफ़ेद पन्ने को
अपने कुरीतियों से ढ़क दिया हो
और बची खुची ज्ञान
ईटों की तरह दीवार
की नींव को बचाने में
अपनी ताकत झोंक रहा हो

व्यर्थ के ये प्रयत्न है सारे
क्यूंकि मानसिकता
आज शून्य पे जा पहुँची है
भूख और कोलाहल
इतना बढ़ चुका है
की इंसा अपने ही
सीमा भूल चुके है
तभी तो अपने दक्षता
साबित करने के लिए
अधकिचरें बिंगे हाफ रहा है
और दुसरें की हदे धूमिल कर रहा है

सच्चे मायने में आज ज़रूरत है
ऐसे इंसानों को और सामाजिक
परिवेश में रहने वालों
ऐसे क्षुब्द बुद्धिजीवी को
हमारे शहर से गुजरने वाली
शोक ग्रस्त तीखी नदी कटिंग धाड़ की
क्यूंकि जब ये इनके
मनमस्तिक से होकर गुजरेगी
एक बाढ़ सी स्तिथि पैदा होगी
जो गुजरने के पश्चात
इनके मानसिकता को कोरा कर देगी
और फिर इस कोरेपन में
जो बीज ज्ञान का बोया जाय
वो पोधे से पेड़ की श्कल
कटिंग धाड़ की तरह लेगा
जो एक साफसुथरे ज्ञान की
दूकान की तरह होगी
जिसके खरीदार अच्छे ज्ञान की
पुस्तक के बदोलत हमारे समाज
और परिवेश को साफ़ सुथरा रखेंगे
गंदगी और धूमिल नहीं !!

Sunday, March 17, 2013

लिख दू ...

एक पंक्तियों में
ग़ज़ल लिख दू
हाल अपनी मोहब्बत
उसमे सब सरल लिख दू

में खुद को ठोस चट्टानों सा
अपनी जीनत को
पानी सा तरल लिख दू
वो बहती जाये बहती जाये
निराधार नदी सा
ओर मैं उसमे खुद को
ईच्छाओं का कमल लिख दू

और लिखू ..

मोहब्बत के बाज़ारों में
अपनी आसुओं का
हर असल लिख दू
लौट के जो आई कभी दुआएं
उनकी चोखट से
उनकी भी फज़ल लिख दू

लिख दू हर मुमकिन जो हो

एक बार एतबार के
नामो का खुद को
खेतों का फसल लिख दू
काट ना सके फिर
उसको ऐसा कोई गरल लिख दू .. !!


Saturday, March 16, 2013

ये हवाएं गुस्ताख है ...



किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,
एक दिन की जुदाई
का सबब कायनात से
उनको सुना डालूँगा मैं,

वो रोयेंगे भी तो
ना पिघलूँगा मैं
इश्क़ की वादा खिलाफ़ी
क्या होता
उनको सरेआम बता दूंगा मैं,

आगे से जब भी तुमसे मिलेगा
झुक के सलाम करेगा वो
मलिका-ए-इश्क़ कह कर
हर घड़ी तेरा एहतराम करेगा वो
गर जो फ़िर भी कोई
शिकायत होगी तो बता देना
उनके आवाज़ को भी कैद कर दूंगा मैं,

किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,

मैंने सुना था कैसे इन गुस्ताखों ने
आशिकों से अपनी रंजिश निभाई थी
तभी तो उसने हीर की ख़बर
रांझे तक नहीं पहुँचाई  थी
अपने साथ ये नहीं करने दूंगा
तेरा गुलाम इसे बना के रखूँगा मैं,

घड़ी घड़ी तेरे जुल्फों को
मेरा नाम लेके उड़ाएगा ये
मेरे बारें
में कह कह कर
तेरे कानो में
तेरा मन बहलाएगा ये
जो इस बार भूल से भी कोई गलती की
तो तेरी क़सम जीनत
इन सबका दुनिया से नाम मिटा दूँगा मैं,

किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,
एक दिन की जुदाई
का सबब कायनात से
उनको सुना डालूँगा मैं .. !!

Friday, March 15, 2013

तू दूर ही खड़ा रहना मुझसे ...



ना मैं उलझुंगा तुमसे
ना तू उलझना मुझसे
मेरी किस्मत
तू दूर ही खड़ा रहना मुझसे,

मैं चुपके से आके
तेरी गलियों से गुज़र जाऊँगा
तू रहम की
एक नज़र ना फेकना मुझपे,

बात जब भी तेरी आएगी
पन्नों के हाशिये छोड़ दूंगा
जो तुम्हें लिखना होगा
लिख देना मैं कुछ ना कहूँगा तुमसे,

बड़ी बड़ी बातें करते थे तुम
एक छोटी सी बात प्यार ना समझ सके तुम
अब इलज़ाम बेवफाई का मुझपे आये या तुमपे
अपनेपन का एक भी जिक्र ना कोई करूँगा तुमसे,

ना मैं उलझुंगा तुमसे
ना तू उलझना मुझसे
मेरी किस्मत
तू दूर ही खड़ा रहना मुझसे,

कल बिताये थे बहुत सारे पल साथ तेरे
आज यादों की सोगात समझकर साथ रखूँगा उसे
तू कुछ और माँग लेना जब तुम्हे माँगना होगा
पर एक भी याद ना बाटूंगा तुमसे,

मैं अकेले अब बहुत खुश हूँ
फिर मजाक बनके ना आना तू कभी धमसे
बहुत जलाया हूँ दिल अपना तेरे दूरियों में
अब मैं माफ़ी चाहूँगा तुमसे,

मेरे रास्ते गरीबी की ही सही
अकेला चलना मंजूर होगा तुम सब से
थक के जो कभी प्यास आई तो
फिर तेरे नाम की एक घूँट पी लूँगा झट से,

ना मैं उलझुंगा तुमसे
ना तू उलझना मुझसे
मेरी किस्मत
तू दूर ही खड़ा रहना मुझसे !!

तुझे सब पता चल जायेगा ...




मेरे बेचैन सांसों को एक नज़र तू देख ले
हुआ है क्या मेरे दिल को मेरे दिल से तू पूछ ले

तुझे सब पता चल जायेगा
तुझे सब दिख जायेगा
मेरे बेचैन सांसों को एक नज़र तू देख ले,

क्यूँ खामोश दूर तक जाती है आँखें
क्यूँ सितम तेरी सह जाती है रातें
क्यूँ उलझ कर ठहर जाती है बातें
क्यूँ याद में तेरे सिहर जाती है बाहें

तुझे सब पता चल जायेगा
तुझे सब दिख जायेगा
मेरे बेचैन सांसों को एक नज़र तू देख ले,

हँस-हँस के गुज़ारा था जो पल तेरे पनाहों में
छुप-छुप के बिठाया था जो तुम्हे निगाहों में
वहीँ कैसे दूर देखू तुझे में अब किनारों में
जब तू ही तू, जब तू ही तू,थी मेरे एक सहारों में,

तुझे सब पता चल जायेगा
तुझे सब दिख जायेगा
मेरे बेचैन सांसों को एक नज़र तू देख ले,

है जुस्तुजू आरज़ू इनायत सब तुमसे 
तुम हो तो सब है, तुम हो तो तुमसे
जो तू नहीं तो कुछ नहीं
जो तू है तो सब तुमसे
बस आ देख ले,

तुझे सब पता चल जायेगा
तुझे सब दिख जायेगा
मेरे बेचैन सांसों को एक नज़र तू देख ले !!

और एक वो है ..

हम खलिश मुफलिशी में भी मोहब्बत के दीनार बाँटते रहे,
वो इकलोते ज़िंदगी के जागीरदारी में भी बटुए सिलाते रहे,

हमने तमाम उम्र अपने को ये कह कर कोस लिया,
और एक वो हैं की अपना ही चेहरा मुझसे छुपाते रहे,

इतने पे गर जो मैं नाफरमान बन जाऊं तो गम ना होगा,
इलज़ाम सर आये सितमगढ़ का तो वो कम ना होगा,

क्यूँकी खासा प्यास से इश्क़ के धुप में हम घुलते रहे,
और एक वो है की मेरे तस्वीरों को अपने अश्क से पोछते रहे !!

Thursday, March 14, 2013

नभ छूने की चाह ...


धूमिल सी काया
दिल में लिए
नभ छूने की चाह
शोषित मन
कुपोषित सपने तले   
जैसे बोराया सा पावं
भूख से चीत्कार रहा हो
सफलता के आग  खाने के लिए ..

यूँ तो आज
वक़्त के मिश्रित सभ्यता में
फसलें तो कई लगे हुए है
पर इनके अनाज के दाने कहीं
और भूसे कहीं रखे हुए है
ऐसे पक्षपाती हालत है
तो ऐसे कैसे मेरे भूखे कदम ढूंढेंगे
नभ छूने की चाह ..

हो चाहे जैसे हालात
किरदार भी चाहे कितने हो
जग के माचिस की डिब्बी में
पर आत्मविश्वास का
जलता मसाल
मेरे निर्धन और दरिद्र ज्ञान ने भी
उठा रखा है
फूंक ही डालूँगा 
जिस दिन अवसर हाँथ लगा 
दुनिया के रद्दी के भाव को 
क्यूंकि मेरे पास है  
नभ छूने की चाह ..