Wednesday, January 7, 2015

पूस की रातें .. !!


मौसम का ये बदला मिजाज 
सूरज का ये कातिल सा छलावा
बूंदों में खुद को तराश कर 
ओस का गिड़ना 
महज एक धोखा होता 
तो 
रैनबसेरे में तेरी यादों के सहारे 
मैं भी एक रात गुजार आता 
मैं भी देख आता 
ये जिद्दी हवाएँ 
कितनी और सर्द हो सकती है 
जो जीने के लिए 
मुझे तेरी यादों से दूर कर सकती है 

सच तो यही है 

कसम सी खा के बैठी है 
ये शीत की ऋतु 
यूँ लग रहा है 
पूस की इन रातों में जैसे 
किसी अपनों से उसकी टकरार हुई है 
तभी तो 
इतना कुछ देख के भी 
वो खुद को बदल नहीं रही 

एक फटी कम्बल में लेटी 
वो बूढ़ी अम्मा 
चौड़े से सड़क के उस किनारे 
फूटपाथ पे 
ठिठुर रही है ठंड से 
वो लड़की 
जो हर रोज 
ऑफिस से मेरे घर वापस आते वक़्त 
एक गुलाब ले लो साहब 
मेमसाहब को दे देना 
वो खुश होगी 
जो ये कहती थी
आज इस ट्रफ़िक सिग्नल के लाल होने पे भी 
नहीं आई थी मेरे पास 
बस बेबस और कपकपाती नज़रों से घूर रही थी 
दूर से ही 
जैसे कह रही हो वहीँ से 
साहब एक कम्बल ला के दे दो कहीं से 
मेमसाहब खुश होगी 
जो सुनेगी कि 
आप ने किसी एक मजलूम को ठंड से बचाया है 

ये देख 
मेरा दिल जब मचल सकता है 
तो 
ऐ पूस की रातें 
तू क्यों नहीं अपने आप को बदल कर 
इन मजलूमों के दुखों में शामिल हो जाती हो 
क्या वैर है आखिर तेरा इनसे ?

Tuesday, January 6, 2015

" बी फ्री " ... !!


आलता
इत्र
लाल रीबन,
 
वो लड़की कहती थी
तुमने इन सब के अलावा भी
बहुत कुछ दिया है मुझे
एक अौरत की धुमिल होते मर्यादा के
उस पार की देह
कोल्हू के बैल के व्यास से
बरसों से बंधे रहने का निजादपन
एक ख्वाब
जिनमें चिनार के हरे पेड़ थे
जहाँ मैं
बेड़ियों से बंधे अपने जिस्म की
थकान मिटाने
कभी कभी जाया करती थी
साड़ियों में बरसों से लपेटी
कभी कैफ्री और टी-शर्ट में
देहलीज लांघ के वहां घूम आती थी
वही टी-शर्ट जिसे तुमने दिया था मुझे
जिसके फ्रंट साइड पे " बी फ्री "
बड़े बोल्ड अक्षरों में लिखा था

" बी फ्री "
हँसी आती है
आज मुझे इन शब्दों पे
तुमसे बिछड़ने के बाद तो
इन शब्दों के मायने ही बदल गए मेरे लिए
हाँ
इतने दिनों में मैंने जाना है
एक अौरत को
उसका प्यार ही उसको ठीक से समझ सकता है
उसके मन के अंदर के परिन्दे को
वो ही सिर्फ उड़ान दे सकता है
और कोई नहीं
बाकी सबके लिए तो
हम लडकियाँ महज एक अौरत है !!