Wednesday, January 18, 2012

में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा ...!!



तू सनम पाकीजगी कर, में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा,
हवाएं कितनी भी बहे बेरुखियों का तेरे आँगन में,
दरवाजा बनके उन्हें में रोकता रहूँगा ..!

कमजोर पल भी आयेंगे तेरे आँगन के पेड़ के शाखों पे,

पर उन शाखों को सलामत रखने के लिए, में हमेसा पत्ते बनके गिरता रहूँगा,

भर जायेगा जब कभी वक़्त की तेज़ बारिशों से तेरा आँगन,

में हर बारिशों के बाद आग बनके (सूरज) आसमा में निकलता रहूँगा,

जब कभी आये याद मेरी अपने आँगन में आके देखना,

में तुलसी बनके, तेरे आगन के मंदिर में तुझसे मिलता रहूँगा,

यूँ तो हमें वक़्त ने जुदा कराया है,

पर जुदा होके भी उस खुदा के पास,
नम आँखों से तेरी सलामती की दुआ करता रहूँगा ..  

तू सनम पाकीजगी कर, में तुझसे एक रिश्ता रखूँगा,

हवाएं कितनी भी बहे बेरुखियों का तेरे आँगन में,
दरवाजा बनके उन्हें में रोकता रहूँगा ..!!

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