Friday, November 23, 2012

मुरीदो की साँझ ...

मुरीदो की साँझ
दिन के उजाले में हो जाने दे,
रात के बेसुद आलम का क्या पता..
वरना सुबह सबेरे
सूदखोर सूरज फिर आयेगा,
कोरियों की भाव में
मेरे चाहतों का मोल लगायेगा,  
ओर..
में टटोलते रह जाऊंगा
बस अपनी खाली जेबों को
जहाँ मुझे तेरी यादों के सिवा
कुछ नहीं मिल पायेगा,
थोड़े थोड़े बह कर हवाएं भी
फिर मुझे इशारा करेगी,
लहरें साहिलों से टकरा कर
तब बहुत शोर करेगी,
में भटकता तब भी रह जाऊंगा रेतों पे अकेला तेरे यादों में..
ओर वाजुदों की आँखे मेरे पावं के निशा ढूंढ़ती रह जाएगी  !!

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