Thursday, January 19, 2012

साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे ...!!



साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे,
खामोशियों का सफ़र देके साथ चल न सके जो,
वो आज मेरे ख़ामोशी पे अपने आँखे मूंद रहे थे ...!!

जो राहे वफ़ा दी उसने हम पहुँच न सके उस मंजिल पे,

बीच राहों में छोड़ कर साथ मेरा, वो आज मेरे राहों का पता पूछ रहे थे,

वक़्त के हाथों लुट के खता उसने की या मैंने की, ये तो मालूम नहीं,

पर रो के वो भी आज अपने हालतों पे कहीं, उस खताई का वजेह ढूंढ़ रहे थे,

अब तक अकेले चलते चलते थका नहीं था में, उनके प्यार के सफ़र में,

पर दूर होके आज भी 
मुझसे वो मेरे आराम के लिए कोई घर ढूंढ़ रहे थे,

साहिलों के रेत पे वो मेरे पांव के निशा ढूंढ़ रहे थे,

खामोशियों का सफ़र देके साथ चल न सके जो,
वो आज मेरे ख़ामोशी पे अपने आँखे मूंद रहे थे ...!!

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