Friday, November 23, 2012

दिल ने कुछ मेरे मन को कहा ...

दिल ने कुछ मेरे मन को कहा
नंगे पावँ मत चलो..
मन के मंदिर की सीढियों पे,
जेठ की तपिश की तरह अब ये जमी जलता है,

मंदिर के दीवारों के बीच रहते है

सिर्फ ओर सिर्फ पत्थर के मूरत
कौन कहता है ..
इन दीवारों में रब बसता है,

खुद को कर के देख कभी ओर अकेला

वक़्त रहते फिर सब पता चल जायेगा,
जूठी स्वांग के पीछे भागती ये दुनिया
बोरियों में भर के तुझे ही
तेरे तनहाइयों पे गाली दे जायेगा,

ख़ैर तुम क्यूँ करोगे..

मन मेरे बातों पे यकीं
तुझे तो ख्वाबों की दुनिया की आदत है
तेरे लिए जीवन तो ऐसे ही चलता है,

जिसको तू रखता है

अपने मन मंदिर में रब बना के
वो रब की तरह तो क्या
इंसा की तरह भी तेरे दिल के लिए कुछ नहीं कर पाता है,

सच बोलू तो मन मेरे तू दुनियावालों के तरह हो गया है,

जिसको देख कर दिल को बहुत दर्द होता है.. बहुत दर्द होता है !!

No comments:

Post a Comment