ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है,
की तेरी जुदाई ने सनम मेरी जान ली है,
कितनी मासूम है ये तेरे होने का एहसास,
जैसे रूह ने एक ओर जिस्म ढूंढ़ ली है,
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है ...
कैसे जिऊँ तेरे हंसी से होके दूर,
जब इस पैर ने एक जमी ढूंढ़ ली है,
क्यूँ पड़ा है इस वक़्त पे तेरे चिलमनो का पेहरा,
जब मेरी नज़र ने जिन्दगी की सकल ढूंढ़ ली है,
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है...
तू छुपते छिपाते चाँद के तरह आजा,
देख मैंने तेरे लिए एक रात ढूंढ़ ली है,
में पूछूँगा न तेरे से कोई सवाल,
आज इस कदर तेरे जुदाई में मैंने हर जवाब ढूंढ़ ली है
ढूंढ़ते ढूंढ़ते ये क्या आवारगी ढूंढ़ ली है .... !!
काश अगर में कोई पेड़ बन पाता,
वो भी किसी राहों का,
फिर हर गुजरने वाले रहगुजर को अपनी छाओं में बुला के सीतलता देता,
हर भूखे को अपने फल देके तृप्ति देता,
सुकून भरी साँसे दे के पत्तों से उसके चेहरे पे मुस्कान बिखेरता,
देते देते एक दिन इतना सब कुछ अपना दे देता,
की पतझर में खड़े होकर, हर पत्ते गिरा के भी अपनी शाखों से,
उसे भी मुस्कुराने का सलाह देता,
टूटता कभी नहीं किसी वक़्त की आँधियों से,
पर सब कुछ खो के भी पतझर के हाथों,
बसंत आने पे अपने दामन को फिर से पत्तों से सजा लेता !!
मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके लफ़्ज़ों की हर खूबसूरती चुराके फिर आईने में तू सजना,
तेरे आँखों में भले ही काजल हो पर अपने होठों को मेरे रंग से ही रंगना,
कोई हवा आके छेड़े तेरे खुले गेसुओं को तो उनको मेरा नाम ले के रोकना,
रख कर मेरे चाहतों जुरा गेसुओं पे अपने ख्यालों से फिर उन्हें ढकना,
मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ...
कहीं तेरा आँचल अल्हर बनके सरके तेरे कांधों से तो उनको टोक देना,
ये हक उनका है ये कह कर बस आँचल को छोड़ देना,
थोड़ा शर्मा के गर जो बिंदिया बिखरने लगी तेरे माथे से,
तो उनको चाँद की ओर दिखा देना,
तोड़ लाना आसमा से उस चाँद को ओर फिर अपनी मांग को सजा लेना,
गर जो कहीं आसमा कुछ बोले तो उसको मेरा नाम बता देना,
रखना ख्याल मेरे आवारगी का तू सनम, ओर यूँ ही हमेसा बस मेरे गजलों से सजना,
मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना,
उनके हर खूबसूरती चुराके लफ़्ज़ों से फिर आईने में तू सजना,
मेरे ग़ज़ल को सनम बस तू ही पढना ... !!
फ़कत फूल की हर खुशबु.. इश्क की तरह तेरे जिस्म से महकेगी,
मत पूछना तू - तब,
मेरे बेहिसाबी जिस्म की आलम की बात,
जब, बिन पिये शराब की तरह.. ये आशिक तेरे जिस्म की खुशबु में झूमेगा,
नहा लेना तू जाके किसी भी समुंदर के लहरों में उस वक़्त,
गर यकी न हो मेरे आवारगी पे तो,
फिर उन लहरों से बाहर आके देखना,
रेत बनके ये आशिक "ही" तेरा कदम चूमेगा !!
फ़कत फूल की हर खुशबु.....
ना तमनाओ से, ना सितारों से सजाना अपना आँचल,
बस थोड़ा टेहर कर ओर कर लेना इंतजार मेरा,
एक दुल्हन की तस्वीर दिल में रख कर आऊंगा,
ओर सारी कायनात को जमी पे उतारूंगा,
बोलूँगा फिर उसे खुदा से .. सजा दे मेरे इस चाँद को,
तेरे चाँद को बादलों में कहीं छुपाऊँगा,
मत देखना तू किसी हेरत भरी नज़रों से हमें तभी,
बस साथ देना थोड़ा ओर जरा... तेरा हर सपना वादों का सच कर के यूँही दिखाऊंगा !!
फ़कत फूल की हर खुशबु.....!!
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ ,
सांसे तेरी मेरी छुअन से बहकने लगे तो रोक लेना,
भर के बाँहों में तुझको आज के बाद बस तेरा होना चाहता हूँ,
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ !!
ना आज के बाद तेरी कोई शाम होगी,
ना ही कोई रात होगी,
मेरे मोजुदगी का ऐसा चमक तेरे जिस्म पे होगा,
हर पल उसके रौशनी में तेरे लिए बस बहार होगी,
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ,
मत छूना मेरे परछाइयों को ....!!
मिलना ऐसे मुझसे शर्मो हया का हर आँचल उतार के,
मिला ना हो जैसे आज तक कोई सावन बहार से,
पिला देना अपने लबो से हर वो जाम,
जिसके लिए बरसों से घूमता रहा है,
ये आवारा हर दिन सुबह शाम,
मत छूना मेरे परछाइयों को,
में तेरे आगोश में आना चाहता हूँ,
तेरे जिस्म को छू के तेरा होना चाहता हूँ,
मत छूना मेरे परछाइयों को ....!!