दिनभर कलरवें करके घर वापस लौटते पँछियों का झुण्ड, धीरे-धीरे गदराता हुआ
साँझ, आसमान में पसरी हुई दूर-दूर तक लाली, इन्हें देख कर भले ही अनिमेष को अजीब न
लग रहा हो किंतु खार गाँव की कच्ची सड़क पर
दौड़ती उसकी अम्बेसडर कार देखने वाले लोगों को बहुत अजीब लग रही थी। अजीब लगे भी क्यों न यह वही सड़क है जहाँ पूरे
दिन टैम्पू झटके खा–खा कर चलता है और इन्हीं झटकों के सहारे यहाँ के लोगों की
जिंदगी धीरे-धीरे आगे खिसकती है।
गाँव को छोड़े हुए अनिमेष को बारह वर्ष हो चुके थे। वह शहर जा कर सॉफ्टवेयर इंजीनयर बन गया था। लेकिन इतने वर्षों में बदलाव के नाम पर उसे यहाँ
जो देखने को मिल रहा है, वह है कार के पीछे दौड़ते बच्चों का झुण्ड, जिसमें अब उसका कोई जाना
पहचाना चेहरा नहीं है, होता भी कैसे उसकी ही तरह उसके साथ दौड़ने वाले बच्चे भी तो
बड़े हो गये है। अगर कुछ ज्यों का त्यों है तो वह है खेतों की मिट्टी की वही सौंधी
सी खुशबू, देवी भगवती का मंदिर और कनाल में बहता थोड़ा बहुत पानी।
इसी कनाल में अपने बड़े भाई महेंद्र के साथ बचपन
के दिनों में अनिमेष टेंगरा माछ मारता और घर लाकर अम्मा को बनाने देता। अम्मा भी
उसे बड़े प्यार से बनाती और दोनों भाईयों को खिलाती थी। ऐसी ही ढ़ेरों यादें उसे उसके
खुदगर्जी के मकान से बाहर निकाल लाई है। शहर के भाग दौड़ भरी जिंदगी में यही यादें कहीं
गुम सी हो गई थी। अपने घर और घरवालों से दूर रह कर उसने जाना था कि रिश्तों की अहमियत
हमारी अपनी महत्वाकांक्षा से कहीं ज्यादा है।
कांति के ब्याह में आना तो महज एक बहाना था। वह
तो यहाँ आज अपने रिश्तों की दरकती दीवारो की मरम्मत करने आया है। अपने बड़े भाई
महेंद्र और अम्मा को शहर ले जाने आया है। बँटवारे में मिले जमीन जायदाद को लौटाने
आया है क्योंकि वक़्त ने उसे उसके बेशकीमती पूँजी परिवार का एहसास दिलवा दिया है।
मगर उसे रह रह कर इस बात की भी चिंता हो रही है कि महेंद्र भैया जब उसके सामने
होंगे तो कैसा रियेक्ट करेंगे, वह अपने गोरका की गलतियों को बचपन के दिनों के तरह
आज भी माफ़ करेंगे की नहीं।
अचानक एक दोराहे पर आकर उसकी कार रुक गई “सर
किस तरफ जाना है?” ड्राईवर ने अनिमेष से कहा।
अनिमेष इधर-उधर देखते हुए “हमें अपने घर जाना
है, मुनिया ताई के यहाँ नहीं”।
“जी समझा नहीं” ड्राईवर ने पीछे पलट कर अनिमेष
की ओर देखते हुए अचरज से कहा।
अनिमेष तो पिछले सीट पर था ही नहीं, नंगे पाँव
सड़कों पर दौड़ता हुआ वह यादों में मुनिया ताई के घर पहुँच गया है। जहाँ पर आँगन में
जुमनी घरौंदा–घरौंदा खेल रही है और वह उसकी छोटी सी चुटिया खीँच कर भागता हुआ ताई
के आँचल में छिप रहा है।
मुनिया ताई उसके पिता शिवपूजन की भाभी है। दादा
के गुजर जाने के बाद कमलेश चाचा ने उसके पिता जी से लड़ झगड़ कर जमीन और जायदाद का
बंटवारा करवा लिया था, जैसा कि इसने अपने पिता के मरने के उपरान्त किया। इस
बँटवारे में उसके पिता के हिस्से पुश्तैनी हवेली और कुछ खेती की जमीन आई, वही उसके
कमलेश चाचा के हिस्से में खलिहान के पास का मकान और थोड़ी-बहुत जमीन व आम का बगिया।
एक वक़्त था अनिमेष महेंद्र भैया के साथ आम के बगिया में चोरी छुपे जाता और कच्ची
अमिया तोड़ कर भाग जाया करता था। अकसर वे दोनों भागते हुए इसी दोराहे पर आकर रुक
जाते, जहाँ महेंद्र अनिमेष से पूछा करता “गोरका किस तरफ जाना है, मुनिया ताई के
यहाँ या घर?”
सर .. ड्राईवर ने इस बार तीव्र स्वर में अनिमेष
को आवाज़ लगाया।
अनिमेष बचपन के गलियों से वैसे ही वापस आ गया
जैसे एक छण पहले चुपके से दाखिल हुआ था। अनिमेष ने हाँथ से ईशारा करके ड्राईवर को
कहा “इस बरगद के पेड़ वाले रास्ते पर ले लो” ड्राईवर ने कार को उस ओर बढ़ा दिया |
कार सीधे हवेली के बाहर रुकी, अनिमेष कार से
उतर कर हवेली को कुछ देर खड़ा निहारता रहा, पीले रंग की वही चूने की मोटी-मोटी दीवारें, गोल-गोल
खम्भों पर टिका छज्जा और छत वाले कमरे की मेहराबो वाली छोटी-छोटी खिड़कियाँ, जिनकी
सलाखें कहीं-कहीं से जंग खाने लगी थी उसके और महेंद्र के रिश्ते की तरह।
हवेली के बाहर दालान पर मजदूरों और मेहमानों की
भीड़ लगी हुई थी। सभी अपने-अपने काम में व्यस्त थे किसी को अनिमेष की ओर देखने तक
की फुर्सत नहीं थी कि तभी एक रोबदार आवाज़ ने सबका ध्यान खिंचा “ऐ बिजली मास्टर
सारा झालर अहिं लगा दोगे क्या? थोड़ा अँगना में भी लगा दो, उधर अँधेरा ज्यादा है।
“महेंद्र भैया” अनिमेष ने महेंद्र को देखते ही
आवाज़ लगाया। आवाज़ इतनी पुरानी थी कि महेंद्र को पहचानने में दिक्कत हो रही थी, वैसे
भी शादी के घर में रिश्तेदार भी तो बहुत आते है, इन रिश्तेदारों में कई तो ऐसे
होते है जिनसे मिले और उनकी आवाज़ सुने कई साल हो जाते है।
महेंद्र धीरे-धीरे दालान पार कर अनिमेष के पास
पहुँचा। बचपन का गोल मटोल महेंद्र अब लम्बा चौड़ा मरदाना बन गया है। उनका सुडोल और
मांसल देह अनिमेष के सामने भीमकाय लग रहा था। बड़ी-बड़ी मूछें, हल्की बढ़ी हुई दाढ़ी उसके
व्यक्तित्व को बयाँ कर रहे थे कि उसके बचपन के भोंदू महेंद्र भैया अब नामचीन
ठेकेदार बन गये है, गाँव समाज में उनका एक रुतवा है। अनिमेष के करीब आकर महेंद्र
ने उसे सर से लेकर पाँव तक देखा, अनिमेष ने जींस और टीशर्ट पहन रखी थी।
“अरे शहरी बाबू, आइये आइये अहो भाग हमारे की आप
आये है, चलिए कम से कम आप को अपनी बहन तो याद रही, मुझे पता होता कि आप भी कांति
के ब्याह में शरीक होने वाले है तो उसका ब्याह दो साल पहले ही कर देते। इससे पहले
की अनिमेष कुछ कहता महेंद्र वहाँ काम कर रहे मजदूर की तरफ मुख़ातिब हो कर कहा “ऐ
जुबैरवा तु क्या कर रहा है? इतना पानी जमीन पर छिड्केगा तो दालान से लेके ओसारे तक
आने जाने वाले के जूते के निशान हो जायेंगे, छोड़ो उसे देख शहरी बाबू आये है, जाओ उनके
सामान को उठा कर अंदर रखो, और सुनो आराम से रखना कहीं भूले से टूट गया तो खामखाह
की मुसीबत हो जायेगी, सामान कीमती है।“ अब तो दोनों भाईयों के बीच अमीरी और गरीबी
की दीवार भी साफ़ साफ़ दिखने लगा था।
अनिमेष का दिल अंदर से जार जार रो पड़ा। यकीन तो
नहीं था पर लगता था उसे कि महेंद्र भैया अपने गोरका को देखते ही सीने से लगा लेंगे
और प्यार से गाल पर थपकी मारते हुए कहेंगे “गोरका कहाँ चला गया था तू”? मगर ऐसा
कुछ नहीं हुआ। महेंद्र मजदूर को निर्देश दे कर उसके सामने से चला गया था। अनिमेष
बुझे बुझे क़दमों से आँगन की ओर बढ़ने लगा।
हवेली की साज-सज्जा के लिए लगाई हुई लाइटिंग और
झालरें जगमगाने लगी थी। दालान के दायें ओर कोने में पड़ा जेनरेटर चीख-चीख कर कह रहा
था, यह रोशनी मेरे दम पर है। जैसे इस हवेली का रुतवा और शान-शौकत महेंद्र भैया के
दम पर है।
आँगन में संगीत का कार्यक्रम चल रहा है, सिर झुकाए
हुए अनिमेष वहाँ प्रवेश किया। “गोरका” गीत गाते महिलायों के बीच से उसकी अम्मा खड़ी
होकर बोली। अनिमेष कितने वर्षों के बाद यह नाम सुना था वह भी अपनी अम्मा के जुबान
से, उसके बुझे हुए चेहरे पर मानो ब्याह के घर की सारी रौनक उतर आई थी अम्मा के एक
शब्द से। उसने भाग कर अम्मा के पैर छुए और सीने से लग गया। गोरका भी अब काफी लम्बा
तगड़ा गबरू जवान हो गया था। उसकी अम्मा तो उसके कंधे तक भी नहीं आ पाई थी।
बेटा है, शहर में रहता है, इंजीनयर बन गया है।
अम्मा ने वहाँ पर बैठे औरतों को कहा। मुझे मालूम था की तू आएगा, महेंद्र से मिला,
वह मिलेगा तो तुमसे बहुत खुश होगा?
अनिमेष ने मरा हुआ सा जवाब दिया, “हाँ मिला, बाहर
ही थे अभी”। अम्मा समझ गई, वह कैसे कमलेश भैया और अनिमेष के बँटवारे के कारण चिढ़ा बैठा
है। अम्मा ने महेद्र के तल्खी को छुपाते हुए कहा “बड़ा परेशान रहता है तेरा भाई,
अकेले होने के कारण घर का और कांति के ब्याह का सारा बोझ उसी पर पर गया है न और
ब्याह वाले घर में वैसे भी हजारों काम होते है।“
अनिमेष ने अम्मा का हाँथ थामा और आँगन के एक
किनारे में ले आया। वह अभी कुछ वक़्त अम्मा के साथ गुजारना चाहता है। “अम्मा,
मुनिया ताई और जुमनी कहीं दिखाई नहीं दे रही है?” अनिमेष ने जब गोतनी और भतीजी के बारे
में पूछा तो उनके आँखों में आँसू आई गई।
अपने आँचल से आँसू पौंछते हुए कहा “क्या बताये
गोरका, एक अरसा हो गया है उनसे मिले हुए। तुम्हारे पिताजी के देहांत के बाद कमलेश
भाईजी इस हवेली को हथियाना चाहते थे। जबकि सब जानते है कि बँटवारे के बाद यह हवेली
तुम्हारे पिताजी के हिस्से आई थी। मगर शराब और बुरे संगती के कारण उन्हें कुछ होश कहाँ
था। महेंद्र और मैंने तो वैसे भी मन बना लिया था की उनको इसमें भी हिस्सा दे दे
किंतु उसी बीच तुमने शहर से ख़त भेजा की तुम्हें इंजिनीयरिंग कॉलेज में दाखिला लेना
है। और उस दाखिले के लिए तुम्हें अपने पिताजी के जमीन जायदाद में से हिस्सा चाहिए।
ताकि तू उसे बेचकर कॉलेज में दाखिला ले सके। फिर महेंद्र ने कमलेश भाईजी को मना कर
दिया। जिसके कारण विवाद शुरू हो गया। बात बढ़कर थाना कचहरी तक पहुँच गया, महेंद्र
को तो दो रात जेल में भी गुजारनी पड़ी थी तुम्हारे ताया जी के कारण। तभी से दोनों
परिवार अलग हो गये और फिर हम कभी नहीं मिले, कमलेश भाईजी के गुजरने के बाद भी नहीं।“
यह सब सुनकर अनिमेष खुद को रोक नहीं पाया। वह
अम्मा के गोद में सर रख कर रोने लगा, “अम्मा, मेरे कारण तुम सब को कैसे दिन देखने
पड़े। मैं कितना स्वार्थी बन गया था।“
भैया, अनिमेष भैया पुकारते कांति आई। अनिमेष ने
खुद को संभाला और खड़ा होकर कांति को निहारने लगा “गुड्डा गुड्डी के खेल खेलने के
उम्र में छोड़ कर गया था जिसे आज वो इतनी बड़ी हो गई थी, उसे सीने से लगा भी नहीं सकता
था। मुझे मालूम था भैया की आप मेरे शादी में जरुर आओगे, और मुझे इतने सारे रक्षा
बंधन के इंतजार का फल एक साथ मिलेगा। यह कह कर कांति ने अनिमेष के पैर को छुए।
अनिमेष ने स्नेह से उसके सिर पर हाँथ फेरते हुए कहा “हाँ बहन, मुझे तो आना ही था
वरना मैं जीवन भर खुद को माफ़ नहीं कर पाता।“
अनिमेष भैया .. सच सच बताओ क्या आप को इतने
वर्षों में हम सब की याद एक बार भी नहीं आई? अनिमेष ने कांति के सवाल का उत्तर
देते हुए कहा “नहीं बहन, मैं अपने स्वार्थ में इतना अँधा हो गया था की मुझे किसी
की याद नहीं आती थी, बस दिमाग में एक ही बात हमेशा चलती रहती थी कैसे ज्यादा से ज्यादा दौलत और शोहरत कमाऊँ।
यही मेरी जिंदगी कि सबसे बड़ी भूल थी।“
सुबह का भुला अगर साँझ को वापस घर आ जाये तो
उसे भुला नहीं कहते गोरका, अम्मा ने अनिमेष के हाँथ सहलाते हुए कहा।
उधर महेंद्र अँधेरे में कनाल के किनारे बैठा,
झींगुरों के शोर में बीते वक़्त की खामोशियाँ सुन रहा था। जब भी वह कनाल के बहते
पानी में कंकड़ फेंकता तो उसे लगता अगला कंकड़ गोरका का बस आने वाला है। आज गोरका
यहाँ तो था मगर यादों का फेंके जाने वाला वो कंकड़ कहीं ओर ही चला गया था। बचपन के
दिनों में साँझ के वक़्त अकसर दोनों भाई यहीं कनाल के किनारे बैठते और अपने अपने
भविष्य की कल्पना करते थे। अनिमेष हमेशा से इंजीनयर बनना चाहता था और महेंद्र फौज
में शामिल होना चाहता था। पढ़ाकू होने के कारण पिताजी और स्कूल के टीचर हमेशा अनिमेष
की तारीफ किया करते थे। छोटी उम्र में ही
अनिमेष ने न जाने कितने अवार्ड अपने आलमारियों में भर लिया थे। वही महेंद्र पढ़ाई
में भोंदू था इसलिए पिताजी उसे ज्यादा पसंद नहीं करते थे। महेंद्र को यह बात हमेशा
कचोटती थी।
गोरका का उपनाम उसके पिताजी ने ही अनिमेष को दिया
था। वजह अनिमेष दिखने में गोरा चिठ्ठा था और महेंद्र दिखने में साँवला। फिर भी महेंद्र
एक बड़े भाई के तरह इन बातों को नजरंदाज़ कर अनिमेष को जान से बढ़कर प्यार करता था।
ज्यों ज्यों अनिमेष बड़ा होता गया महेंद्र से उसकी दुरी बढ़ने लगी। छोटी उम्र में ही
उसके कई सारे दोस्त और गर्ल फ्रेंड बन गये थे। उसका ज्यादा वक़्त नये दोस्तों में
बीतता था। वह तो महेंद्र को भैया तक कहना बंद कर दिया था।
बोर्ड के एग्जाम में जहाँ महेंद्र फ़ैल हो गया
वही अनिमेष को अव्वल आने के लिए स्कालरशिप मिली थी। वह आगे की पढाई शहर जाकर करना चाहता था। मगर
पिताजी ने मना कर दिया, वे चाहते थे, दोनों भाई एक साथ उनके आँखों के सामने रहे और
यहीं कोई बिजनेस करे। महेंद्र ने ही जाकर तब उस समय पिताजी को समझाया और गोरका को
शहर पढ़ने के लिए भेजा। उसे क्या पता था गोरका शहर जाकर इतना बदल जायेगा। पिताजी के
मरने पर भी वह घर नहीं आयेगा।
पिताजी के मरने के उपरांत अनिमेष के ही जिद्द
के कारण बँटवारा हुआ था। कमलेश ताया जबरदस्ती जमीन जायदाद में हिस्सा चाहते थे।
जिसके कारण ताया से उसकी लड़ाई हुई और उसे जेल में भी दो रात रहना पड़ा था। महेंद्र
जब जेल में था उसने तब भी अनिमेष को खबर भिजवाया मगर वह उस वक़्त भी नहीं आया। अम्मा
ने उस समय कांति के ब्याह के लिए रखे जेवर बेचकर उसको छुड्वाया था। महेंद्र कैसे
भूल सकता है इतना कुछ। छोटी सी उम्र उसने कैसे कैसे घर को चलाया यह महेंद्र ही
जानता था। फिर ठेकेदारी का काम भी कम टेंशन का थोड़े ही होता है, गुंडागर्दी,
राजनीति और पुलिस का पंजर ने तो महेंद्र को बिलकुल बदल दिया था। यादों के भँवर से
महेंद्र वापस आया, रात भी काफी हो चली थी। जेनरेटर के शोर तले झालरों के रोशनी से
पुश्तैनी हवेली खूब चमक रही थी।
और कुछ बताइये न मुंबई के बारे में, हमारे लिए
वहाँ कोई भाभी ढूंढी की नहीं। हाँथों में मेहँदी लगाये अनिमेष से पांच साल छोटी
बहन कांति उससे बातें कर रही थी, जब महेंद्र ने आँगन में कदम रखा। अम्मा मेरे लिए
चाय बना दो सर मैं बहुत दर्द हो रहा है। “खाना नहीं खायेगा देख अनिमेष कब से तेरा
इंतजार कर रहा है” इंतजार तो हमने भी बहुत किया था। महेंद्र की नोकदार बात पर सब खामोश
हो गये थे। मुझे भूख नहीं तुम बस चाय दे दो, कहकर महेंद्र अपने कमरे जाने को ही था
की कांति महेंद्र के पास आकर कहा “महेंद्र भैया देखो ने अनिमेष भैया ने मेरे लिया
क्या लाये है। गले में पहने नेकलेस महेंद्र को दिखाते हुये कांति ने कहा, “हीरे के
है।“
वापस कर दो इसे, कल को यदि उसके घर में कोई काज
होगा तो इतना महँगा व्यवहार मैं नहीं चूका सकता।
महेंद्र की बात सुनकर अनिमेष को रहा नहीं गया,
यह कैसी बात कर रहे है महेंद्र भैया? कांति मेरी भी तो बहन है। आपका ऐसा सोचना
बिलकुल गलत है।
हाँ, मैं ठहरा दशमी फेल , तू ठहरा पढ़ा लिखा
शहरी बाबू। तू जो बोलेगा सब सही होगा, भैया तू यह सब रहन दे।
महेंद्र क्या हो गया है तुझे, एक तो गोरका
परदेश से कांति के ब्याह में शामिल होने आया है और तू इस तरह बातें करेगा है, बीच
में आकर महेंद्र को डाँटते हुए अम्मा ने कहा।
महेंद्र बोल पड़ा “तुम चुप ही रहो अम्मा, आज घर
में शादी है तो चले आये है रिश्तेदारी निभाने, इतने साल हम कैसे रहे क्या किये
क्या किसी ने सुध तक लेना जरुरी समझा। मेहमान के तरह आये है मेहमान बन कर रहे उसी
में अच्छा है। और तुम भी कहती थी जब से परदेश गया है गोरका एक बार बात तक नहीं
किया है, हमारी सुध तक नहीं लिया है। महेंद्र के मुँह से खड़ी निकली तो एक बार फिर
सभी खामोश हो गये।
शादी में आना तो एक बहाना है अम्मा, सच तो है
की यह पिताजी का पुश्तैनी घर बेचकर मुंबई में बंगला खरीदना चाहता है। पैसा तो है
नहीं, जमीन जो इसके हिस्से आया था उसे बेचकर पढ़ाई तो पूरा कर लिया। अब इसकी नजर इस
हवेली पर गड़ी हुई है। मैंने बताया नहीं था तुमको अम्मा एक महीने पहले तुम्हरे
गोरका का फ़ोन आया था। उस वक़्त उसने यह प्रस्ताव रखा था। उसकी बातों को सुनकर जब मैंने
उससे पूछा “हम रहेंगे कहाँ” तो बोला हमारे साथ यहीं मुंबई में, अब तुम ही बताओ
पिताजी की आखरी निशानी भी इसे दे दे और हम सड़क पर आ जाये। क्या तुम यही चाहती हो? दबी हुई बात आखिर सामने आ गई, महेंद्र की बात
सुनकर अम्मा सन्न रह गई।
गोरका क्या महेंद्र सही कह रहा है।
हाँ अम्मा, पर ऐसी बात नहीं है। सच तो यह है की
मैं आपलोगों के साथ रहना चाहता हूँ, मुझे अब आपलोगों से और दूर रहा नहीं जाता। अगर
आपको यकीं नहीं होता है तो मैं मुंबई छोड़ कर यही हमेशा के लिए आपलोगों के साथ रहने
चला आता हूँ महेंद्र भैया। यह कहते हुए अनिमेष का गला रुंद आया। उसकी बातों में
सच्चाई दिखी तो महेंद्र भी थोड़ा ढीला पर गया। कॉफ़ी तो नहीं है चाय पियेगा। महेंद्र
ने पूछा तो अनिमेष ने हाँ कर दी।
घर के पीछे वाले खुले ओसारे में चारपाई पर बैठे
दोनों भाई चाय पी रहे थे। खुले आसमान में टिमटिमाते तारों को निहारते हुए महेंद्र
ने ही पूछा “और कैसी रही मैकेनिक की पढ़ाई?” मैकेनिक नहीं भैया सॉफ्टवेयर इंजिनीयरिंग
की पढ़ाई। महेंद्र की बातों का अनिमेष ने जवाब दिया और आगे बोला “क्या बताऊँ भैया देश का सबसे बड़ा सॉफ्टवेयर इंजीनयर बनने के होड़ में मैं इतना आगे निकल गया
की बाकी सारे रिश्ते पीछे रह गये। शुरू शुरू में इतना व्यस्त रहता की कई कई दिन हो
जाते थे खुद को देखे हुए, यूँ लगता था की जैसे दुनिया फतेह करने का काम कर रहा हूँ।
अनिमेष की आँखें किसी शून्य को ताक रही थी। पिछले सात सालों में न जाने कितनी
किताबें खंगाल डाली और कितने सॉफ्टवेयर बना डाले मगर मुझे जो चाहिए था वह नहीं मिला।
सबसे आगे निकलना इतना आसान काम नहीं था। फिर धीरे-धीरे मेरा मन उचटने लगा था, लगता
था भाग जाऊँ जोर जोर से चीखूँ, तब मैंने तय किया की यह सब छोड़ मैं वापस आउँगा,
लेकिन वापस आने के लिए मुझे बहुत देर हो गई। मेरे खुदगर्जी ने सारे रिश्ते खाक दिए
थे। अनिमेष के आँखों में महेंद्र को पहली बार इतना खालीपन दिखाई दिया, ठंडी पड़
चुकी चाय की तरह अनिमेष का शरीर भी ठंडा हो गया था। महेंद्र ने जब उसके कंधे पर
हाँथ रखा तो एक गर्म बूंद हथेली पर महसूस की, अनिमेष के आँखों में आँसू भर आये थे।
महेंद्र भैया कांति का ब्याह तो एक बहाना भर है। मैं तो आके आपसे माफ़ी माँगना
चाहता था। महेंद्र ने हिचकी भरते हुए “कैसी माफ़ी”। महेंद्र भैया जब मुझे आपका साथ
देना चाहिए था तो अपने दोस्तों और पढ़ाकू होने के घमंड में आपसे दूरी बना लिया। जब
पिताजी की तबियत ख़राब थी और वे नहीं चाहते थे की मैं उन्हें छोड़ कर जाऊँ, उस वक़्त
भी मेरे जिद्द को पूरा करने के लिए आपने पिताजी को मनाया था। देखिये मैंने इतने
प्यार के बदले आपको क्या दिया, जायदाद का बँटवारा करा कर आप सब को भूखों मरने छोड़
दिया। सच बोलू तो भैया मैं स्वार्थ में इतना अँधा हो गया था की मैं नहीं चाहता था
की आप आगे बढ़े वरना मुझे तो स्कालरशिप मिल ही रही थी फिर मुझे भला जमीन जायदाद की क्या
जरुरत थी। मुझे याद है जब आप जेल में थे और घर से फ़ोन आया था उस वक़्त मैंने
आपलोगों को कितना इग्नोर किया था। मुझे माफ़ कर दो भैया, यह कह कर अनिमेष घुटने टेक
कर जार जार रोने लगा था। उसका हाँथ थामे महेंद्र खामोश खड़ा रहा, छोटा सा था जब
गोरका, किसी चीज़ के लिए ऐसे ही रोता था। उसे बचपन याद आ गया अनिमेष को माफ़ करते
हुए कहा “चल मुनिया ताई के आम के बगिया से अमिया तोड़ कर आते है, और मुनिया ताई को भी
वापस घर पर लाते है”।