Friday, February 21, 2014

मेरे कमरे के चार दिवार ...

मैं और मेरी प्रेयसी
मेरे कमरे के चार दीवारों में रहते है,
जिन चार दीवारों की भूमिका
मेरे और उसके प्रेम जैसी अलग अलग है,
जहाँ कमरे के एक दिवार पे
आने वाले ज़िंदगी के अविकसित से सपने है,
वही दूसरी दिवार पे हमारे
एक दशक की प्रेम का जंग लगी हुई यादें
जिसे हम लोग हर रोज साथ मिल कर साफ़ करते है,
तीसरे दिवार के क्या कहने
वहाँ मेरी और उनकी तन्हाईयाँ दर्ज़ है
जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती
चौथे दिवार पे हम दोनों खुद से खड़े है
जहाँ से हम प्रायः इन तीनों दीवारों को ताका करते है 
ये सोच कर किसी दिन यह कमरा एक घर बन जायेगा,
और हम दोनों इसके आगोश में खो कर
प्रेम कि पराकास्ठा को छू आयेंगे।

Wednesday, February 5, 2014

मैं बेख़बर रह गया ...

वो रंजिशों कि क्या तल्ख रात थी,
कोई शहर में था और मैं बेख़बर रह गया।

ऐसे में हादसों को क्या कोसता मैं, 
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।

वो रंजिशों कि क्या तल्ख रात थी,
कोई ख़बर में था और मैं बेख़बर रह गया।

ये जुल्म इम्तहां था या फ़कत बेवफाई
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।

ग़मख़ार मेरे दिल की वफ़ा तो देखो,
याद उन्हीं को किया जो उसे रुलाता रह गया।

छोड़ के दामन गया जो कोई गैर बन के,
साँसे उन्हीं के नाम का माला जपता रह गया।।   

आँखें सुनी सड़क पे ढूँढता रहा अक्स जिनका,
चर्चा उन्हीं का चौराहों पे सरेआम होता रह गया।

दुआ वापस लौट आई है उनके चौखट से,
जहाँ नेमतों का साँझ सुबह होता रह गया।।

न मदीना जा पाया न महजिद कि गली,
इश्क़ में जब से मैं ख़ुदा को देखता रह गया।

कोई सफ़ीना न उतार पाया जिंदगी के लहरों पे, फिर कभी,
बेमुरवत डूब के तुममें जब से और डूबता रह गया।।

Monday, February 3, 2014

सालमोन ...

तुम जिस दिन
अधीर होके आ जाओगी वापस
मेरे प्रेम की मीठी नदी में,
उस दिन
मैं अपना देह और आत्मा
दोनों तेरे हाँथों में रख दूँगा,

मैं ये नहीं पूछूँगा
तुम कहाँ थी इतने दिनों तक
तुमने किया क्या ?
अपने बचपन के गलियों से निकलने क बाद,
वगैरह, वगैरह,

हाँ ये बातें पूछूँगा ज़रूर,

क्या तुम्हें याद है?
अपने बचपन के दिनों की,
उस चौड़ी सी शहतूत की पेड़,
जिसके घनी डालियों के बीच से
मैं तेरे लिए पके शहतूत तोड़ के
ज़मी पे गिराया करता था,
क्या तुम्हें याद है?
वो सफ़ेद खल्ली की पाउडर,
जो हमने कभी दिया था,
तेरे किताबों के बीच रखे
मोर पंख को खिलाने को,
ये कह कर की
जब तक ये मोर पंख ज़िंदा रहेगा,
हम दोनों ज़िंदा रहेंगे,
यूँ ही एक दूसरे के साथ
एक दूसरे के प्रेम में,

ये सुन
अब तुम ये मत कह देना, कहीं,
मुझे कुछ याद नहीं है
मुझे दिखलाओ,
वो शहतूत का पेड़, वो मोर का पंख,
क्योंकि वक़्त के हाँथों
जहाँ हम दोनों जवान हुए है,
वहीँ ये दोनों विलुप्त हो गये है,
हाँ मैं दिखा तो नहीं पाऊँगा वो सब,
पर
मेरे ज़ेहन में वो सारा वाकिया
ज्यों का त्यों
तेरे बालों से बँधी लाल रीबन कि तरह
उस वक़्त से  आज तक बँधी पड़ी है,
साथ ही तेरा वो किताब
मेरे पास यूँ ही सलामत है,
जिसे तुमने आखिरी बार
मुझसे जुदा होते वक़्त दिया था,
ये कहकर की
आज से ये किताब तुम संभालों
मोर पंख में ले जाती हूँ,

तो अब तू बता
जब तुम सालमोन बन वापस आई हो,
उसी जगह मेरे पास
तो क्या तुम ?
हमारी बचपन कि अधूरी पड़ी
प्रेम कहानी को पूरा करोगी,
अगर हाँ तो निकालो वो मोर पंख
रखों उसे उसी किताबों के बीच
ताकि फिर से
हम दोनों इस मोर पंख के बहाने
एक दूसरे के साथ
एक दूसरे के प्रेम को जिए
अपने प्रेम की सादगी और वजूदों की
स्वेत सा परागकण देकर …  !