Sunday, December 2, 2012

छुपा रखा हूँ ...

शफ़क ना पढ़ ले कोई चेहरे से मेरे,
इसलिए अपना तस्वीर छुपा रखा हूँ,
 
सिने में उफनता सागर
आँखों में सेलाब छुपा रखा हूँ,
 
एक हादसे से सनी छोटी सी ज़िंदगी का
लम्बा सा बयान  छुपा रखा हूँ,
 
थोड़ी सी बिखरी स्याही पन्नो के
कुछ टूटे अधूरे शब्द छुपा रखा हूँ,
 
बिकते घोंगो की बस्ती में 
एक सिप मोती का छुपा रखा हूँ  
 
धुएं हुए सपने संग सही मायने में
कल की बेहतरी का आग छुपा रखा हूँ !!

No comments:

Post a Comment