Saturday, March 16, 2013

ये हवाएं गुस्ताख है ...



किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,
एक दिन की जुदाई
का सबब कायनात से
उनको सुना डालूँगा मैं,

वो रोयेंगे भी तो
ना पिघलूँगा मैं
इश्क़ की वादा खिलाफ़ी
क्या होता
उनको सरेआम बता दूंगा मैं,

आगे से जब भी तुमसे मिलेगा
झुक के सलाम करेगा वो
मलिका-ए-इश्क़ कह कर
हर घड़ी तेरा एहतराम करेगा वो
गर जो फ़िर भी कोई
शिकायत होगी तो बता देना
उनके आवाज़ को भी कैद कर दूंगा मैं,

किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,

मैंने सुना था कैसे इन गुस्ताखों ने
आशिकों से अपनी रंजिश निभाई थी
तभी तो उसने हीर की ख़बर
रांझे तक नहीं पहुँचाई  थी
अपने साथ ये नहीं करने दूंगा
तेरा गुलाम इसे बना के रखूँगा मैं,

घड़ी घड़ी तेरे जुल्फों को
मेरा नाम लेके उड़ाएगा ये
मेरे बारें
में कह कह कर
तेरे कानो में
तेरा मन बहलाएगा ये
जो इस बार भूल से भी कोई गलती की
तो तेरी क़सम जीनत
इन सबका दुनिया से नाम मिटा दूँगा मैं,

किन-किन हवाओं ने तेरी ख़बर
मुझ तक ना पहुँचाई
उन ना फरमानों का
पंख क़तर डालूँगा मैं,
एक दिन की जुदाई
का सबब कायनात से
उनको सुना डालूँगा मैं .. !!

2 comments:

  1. हवाओं की गुस्ताखी माफ़ ना हो :)
    सुन्दर भावाभिव्यक्ति
    बेहतरीन .....

    अजय जी, एक सुझाव
    आप अगर अपने ब्लॉग से word verification हटा लेते हैं तो टिप्पणी देने में आसानी होती है
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    1. शुक्रिया शिवनाथ जी ... आप सब की परेशानी को समझते हुए .. वर्ड वेरिफिकेशन को अभी हटा देता हूँ !!

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