Tuesday, June 23, 2015

दोहरी गलती ....



धत्त ... बीहने-बीहने किस अभागिन, कलंकनी को देख लिया! हुक्के को गुरगुराते, धुएँ के सफेद छल्लों से नीम के पेड़ के निचे के स्वच्छ माहोल को दुषित करते हुए बंग्ट्टू चौधरी ने कहा, “आज जरुर फिरो एक अन्न का दाना नसीब नहीं होगा” !    
“हाँ .. चौधरी जी, कलमुंही, कलंकनी को जो देख लिया है, और तो और, जब से अपने पति को खाई है, तब से गाँव के लोग इसको डायन कह कर पुकारते है! देखिये देखिये कैसे सफेद साड़ी में” ...
ओमल का बात पूरा होता की चौधरी ने उससे पहले हुक्के के आग को इकठ्ठा करते हुए बोला “सफ़ेद साड़ी में चुड़ेल लग रही है, यही न ओमल भाई, ऐसा जैसे कोई राक्षसनी भेष बदल कर हमरे गाँव में आ गई हो!”
इसमें कोनो दोराय नहीं है, आप सहिये कह रहे है, और एगो बात जानते है चौधरी जी, जिस दिन इ ब्याह कर के आई, कलमुंही, ससुरी उस दिन मेरा एक जोड़ी बैल खा गई! हमका तो लगा जीवछपुर वाली को जा कर कह दे कि, किसको ब्याह कर ले आई हो? देखिये एक सप्ताह नहीं गुजरा और बेचारा शिवहर ...
कमाल है महराज, आप लोगों का भी, आप लोग क्यों बोरा रहे है? ई सब भाग का लिखा होता है और इसमें उस बेचारी परवतिया का दोष है! ओमल भाई आपके बैल का तबियत तो पहले से खराब था, और शिवहर का मौत एक शहीद के जैसे हुआ, जंग में तो जान जाती ही है! राष्ट्र के लिए शहीद होना गौरव की बात है! हाँ दुर्भाग्यपूर्ण यह हुआ कि बेचारा अपनी पत्नी के साथ एक रात गुजार नहीं सका किन्तु मुझे इस बात का फक्र है! हमारे इस छोटे से चिकनी गाँव में इतने बड़े बलिदानी लोग भी है! इसलिए कहता हूँ, आपलोग पढ़े लिखे जिम्मेदार व्यक्ति है! जरा सोच कर बोला कीजिये, इस चौपाल से उठने वाली हर बात गाँव वाले सर माथे पर रखते है! देखिये, तो जरा परवतिया के ओर उस मासूम के बारे में सोचिये, इस वक़्त उसपे क्या गुजर रही होगी! अभी मेहँदी का रंग सुर्ख लाल भी नहीं हुआ था की विधाता ने उसको सफेद साड़ी में लपेट दिया! कम से कम उसकी दुःख को दूर नहीं कर सकते तो बढाइये भी तो नहीं!
ह्म्म्म ..  राजन भाई, आपको बड़ी चिंता हो रही है, वैसे लगती कौन है वह आपकी? राजन  अपने कुरते के आस्तीन को समटते हुए उत्तर दिया “चौधरी जी, लगेगी कौन, गाँव के जैसे और लोगों के साथ मेरा रिश्ता है! वैसा इसके साथ भी है, इंसानियत का!”
सिर्फ इंसानियत का ही कुछ और तो नहीं है न! आप भी जवान ठहरे और वह भी! उपहास करते हुए चौधरी ने कहा! ओमल के उपहास से राजन को गुस्सा आ गया, उसने तल्ख लहजे में चेताते हुए कहा, “ओमल भाई इतना बेहूदा मजाक मुझे बिलकुल पसंद नहीं है! आगे से इसका ख्याल रखियेगा तो सभ्यता होगी!”     
पार्वती जिसकी बातें चौपाल में बैठे बंग्ट्टू, ओमल, राजन और अन्य कर रहे है! वह इन सबों के बातों से कहीं दूर, कुए के गहराई से तांबें के मटकी में अपनी बिखरी हुई जिंदगी को छान कर निकालती हुई, सोच रही थी! “शिवहर रहता तो कितना अच्छा होता, आज मुझे गाँव समाज के साथ सास की भी दिल को भेदने वाली रोज की प्रताड़ना नहीं सुननी पड़ती! अब मैं किसको किसको समझाऊ कि मैं न ही अभागिन हूँ, न ही कलंकनी हूँ और न ही मैंने अपनी पति को खाई है! बुदबुदाती हुई ... मैं डायन भी नहीं हूँ...”!
मठके को पानी से भर पार्वती ने धीरे से कमर पर टिकाया और चौपाल की ओर कदम बढ़ाने लगी! तीखी नैन नक्स की भोली सी लड़की, सफेद साड़ी में भी उसकी खुबसूरती आँखों से समेटी नहीं जा रही थी! वह यूँ लग रही थी, जैसे पान के पत्ते पर पूजा का कोई पिठार लेप रखा हो! सुराही दार कमर पर पानी से भरा मटका उसके चालों को बलखाती नदी सी मादकता दे रही थी! कभी-कभार कमर के ज्यादा लचकने से मटका का पानी छिलक कर साड़ी को भिंगाता हुआ जमीन पर गिड़ता, तो मुझे उसके विशाल हिर्दय के होने का एहसास होता! कैसे वह लोगों के इतने सारे तंज सुनने के बाद भी तनिक भी विचलित नहीं होती, हाँ जब सर से उसके पानी उपर होने लगता है तो वह इस मटके की तरह उनके तंजों को अपने दिल से छलका कर बाहर कर देती! वाकई में विशाल हिर्दय रखती है वह भी सत्रह वर्ष की छोटी सी उमर में! उसकी सहनशीलता अवध की औरत की ऐसी चरित्र को दर्शाती है, जिसे देखकर मन प्रसन्न भी होता है और कुंठित भी! उसके जैसी औरत सिर्फ यहीं मिल सकती है और दुनिया में कहीं नहीं! बड़ा ही अदभुत और पावन सा एहसास हो रहा है पार्वती को देख कर, किन्तु आज उसके बढ़ते क़दमों में मुझे एक मौन बगावत भी दिख रहा है! “भगवान जाने यह क्या है? यह मेरा एक भ्रम भी हो सकता है! भ्रम ही हो तो अच्छा हो ... !!”    
पार्वती को चौपाल की ओर आते देख, ओमल ने ठंडी सांसें भरते हुए राजन को कहा, “देखिये राजन भाई .. देखिये, क्या नज़ारा है, ससुरी क्या कातिल लग रही है? और किसी का जान लेगी, अवश्य देख लीजिये!”
राजन ने ओमल को झरकाने वाला उत्तर दिया, भगवान करे जान जानी अहिं से शुरू होए, कब्र में पैर लटके हुए है और बातें तो दिखिए श्रीमान के ...         
पार्वती चौपाल के सामने पहुँच कर, मटके से पानी छलकाते हुए जमीन पर शून्य की आकिर्ति बना दी, फिर एक हेय भरी नजर से जमीन पर बने शून्य की आकिर्ती और हम सब की ओर देखकर अपने घर की ओर चली गई! वह भी बिना कुछ कहे! पार्वती के इस हरकत को देख हम सब की आँखें विस्मय से फटी रह गई! मेरे दिर्ष्टि में उसने तो हमारे रोज के तंजों का एक विदुषी महिला के तरह मूक होकर जो जवाब दिया था वह सोचनीय है! जिसे समझने के लिए पार्वती के अंदर उतरे बिना किसी के लिए संभव नहीं! लोग भले ही उसको जाहिल गंवार समझते हो किन्तु मैं तो अब ऐसा कदापि नहीं सोचता!
अरे राम ... देखिये ई बित्ते भर की औरत, क्या कर के चली गई! ऐ राजन भाई आप तो ज्यादा पढ़े लिखे है जरा बुझाइए तो सही उस कलमुंही के अनायास किये गये, इस हरकत का मतलब?
राजन एमऐ किया है! न्यायपालिका और न्याय व्यवस्था में दिलचस्पी बचपन से होने के कारण! गाँव वालों ने उसे चौपाल पर विराजमान किया है बूढ़े और संवेदनहीन लोगों के बीच! 
राजन ने चौधरी को कहा “चौधरी जी बोईयेगा बबूल तो आम कहाँ से मिलेगा, अब वक़्त वह नहीं है! जब औरत मर्दों की पाँव की जूती हुआ करती थी! अब तो औरतें अपने अपमान और तिरस्कार का खूब जवाब देना जानती है और उसने मूक होकर हम मर्दों को एक संवेदनशील जवाब दिया है!”
कैसा जवाब राजन भाई?  
यही कि वक़्त बदल रहा है, आप लोग भी खुद को बदल लीजिये! उसके इस हरकत का मतलब इतना है कि “इस विशाल धरती पर हमारी मानसिकता उसके नजरों में शून्य के बराबर है और कुछ नहीं!” खैर मैं अब चलता हूँ, मुझे एक रिश्तेदार के यहाँ मुंडन में जाना है, आप लोग हुक्के के बुझे राख से चिंगारी तलाशते रहिये! राम–राम !!
पार्वती आज चौपाल पर बैठे सम्मानित लोगों को जवाब दे कर हल्का महसूस रही है! चौपाल पर बैठे लोग हर रोज अपने मर्यादा से बाहर निकलकर उसे न जाने क्या क्या कहा करते थे! वह घर तो चली आई है किंतु उसके मन में एक अपराधी की भावना कचोट मार रही है! जैसे कि उसने चौपाल मैं बैठे लोगों को जवाब दे कर कोई अपराध किया हो!
अब क्या तोड़ दी तूने, कलमुंही? एक तो इस उमर में कमर तोड़ डाला और कुछ रह गया है क्या बांकी, करमजली, डायन?
माँ जी टूटा कुछ नहीं मटका गिरा .. हाँथ से न जाने कैसे फिसल गया!
तो तू क्यों नहीं गिर कर मर गई उस मटके के साथ, न जाने क्या पाप घेरा था! जो तुझे इस घर में ले आई! डायन भी एक घर बकस करके चलती है और तू तो अपने ही घर को ...
माँ जी .. भगवान के लिए, उनके मौत का जिम्मेदार मुझे नहीं समझिये! अगर आप ही ऐसा कहेंगी तो बाहर वाला मुझे तो तानों से नौच नौंच के खा जायेगा!
अच्छा ही होगा कम से कम पिंड तो छूटेगा, तूझ जैसे डायन से!
इस छोटी सी उमर में पार्वती का विधवा होना उसके लिए एक अभिशाप बन चूका है! उसे हर कदम पर ऐसे ही तीखे हिर्दय को भेदने वाले ताने सहनी और सुननी पड़ रही थी! जबकि सब जानते है, जीवन और मरण सिर्फ उपर वाले के हाँथों में है, फिर पार्वती के आस पास के लोग शिवहर की मौत का जिम्मेदार उसे क्यों समझते है?
एक सप्ताह के बाद चौपाल पर भीड़ लगी हुई है! बंग्ट्टू और ओमल के साथ सबकी नज़र जुम्मन दर्जी पर जमी हुई है!    
उहहू... उहहू... “जब तक जियेंगे तब तक सियेंगे”! अपना तकिया कलाम मारते हुए जुम्मन दर्जी, एक पतली सी छड़ी के सहारे अपने देह संग भू-कंपन की स्तिथि में खड़ा, बकरे जैसे दाढ़ी पर हाँथ फेरते हुए, बड़े ही आत्मविश्वास से कहा “चौधरी जी, अल्लाहं मियां जी की कसम, मैंने जीवछपुर वाली के बहु को राजन के साथ शिवमंदिर के पीछे वाले आम के बगिया में देर रात को जाते हुए देखा था”!
मियां जी आप इतनी रात को वहाँ क्या कर रहे थे ? चौपाल पर बैठे बंग्ट्टू चौधरी ने गाँव के दर्जी जुम्मन से पूछा!
उहहू, उहहू .. चौधरी जी उमर ही ऐसी हो गई है कि, कुछ याद ही नहीं रहता, दरअसल में, परसों यूनानी हकीम साहब से अपने पेट के हाजमा के लिए कुछ सफेद गोलियाँ लिया था! जिसे मैं उस रात को अपने दुकान में भूल आया था! रात को घर पर जैसे ही मुझे याद आया, मैं वापस दुकान गया! इसी क्रम में मैंने इन दोनों को देखा था!
ओ .... फिर आपने उसी वक़्त जीवछपुर वाली को क्यों नहीं बताया, यह बात जा कर!
ओमल भाई आप भी कमाल करते है, भला इतनी रात को शरीफों का किसी के घर जाने का वक़्त होता है क्या? मैं रात के बदले फजर के नवाज़ के समय गया था! उस वक़्त जीवछपुर वाली सो रही थी! आगे आप जीवछपुर वाली से खुद पूछ लीजिये!
जीवछपुर वाली क्या जुम्मन मियां सही कह रहा है?
हाँ .. चौधरी जी इ सही कह रहे है! मुझे तो इस निरलज्ज, मुझोंसी ने कहीं का नहीं छोड़ा, बाप रे ऐसी भी औरत होती है? जो थी, सो थी, अब तो यह बेहया भी हो गई है! आप सब पंच परमेश्वर से मेरी विनती इतनी ही है कि, मुझे इससे पीछा छुड़ा दीजिये! अब मैं और इसको अपने घर में और नहीं रख सकती!
जीवछपुर वाली आप इत्मीनान रहिये, यहाँ दूध का दूध और पानी का पानी होगा, केवल आप अभी इतना बताइए की जुम्मन जब पहुँचा आपके पास तो क्या हुआ?
उ दिन भिंसरा में जब चुम्मन पहुँचा तो मैं ओसरे पर सो रही थी! सहसा नींद में, जब मुझे पुकारे जाने की आवाज़ कानों में पड़ी तो घबरा के उठी और जुम्मन को देख कर चौंकते हुए कहा “क्या हुआ जुम्मन भाई इतना भिंसरा में “ फिर जुम्मन ने आँखों देखि रात की सारी बात मुझे बता दिया! उसके बातों पर विश्वास न करते हुए, मैंने जब इस कलमुंही के कमरे में गई तो वह वहाँ नहीं थी! मतलब फिर साफ़ था, वह रात को गायब थी अपने यार राजन के साथ!
वही चौपाल में आरोपी बनी पार्वती पाँव के अंगूठे से जमीन को कुरेदते मौन हो कर जैसे यह कह रही हो “हे धरती माँ फटो और मुझे खुद में समा लो, आज तेरी एक और बेटी के चरित्र पर झूठी उँगलियाँ उठाई जा रही है!” और दूसरा आरोपी बना राजन बस यह सब हँसते हुए देख रहा है! उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, क्योंकि वह जानता है यह सब एक साजिश है जिसकी आड़ में उसको सरपंच के पद से साथ-साथ गाँव छोड़ने का भी सज़ा मिलने वाली है! क्योंकि पंचायत के अन्य सदस्य बंग्ट्टू, ओमल, हरेराम और देवन को वह फूटी आँख नहीं सुहाता! सिर्फ थोड़ी बहुत जो चिंता की लकीरे उसके माथे पर उभरी हुई है वह परवतिया को लेकर है, न जाने ये मक्कार और मौकापरस्त पंचायत के लोग उसके साथ क्या सलूक करेगें!
जीवछपुर वाली की बात पूरी होते ही सब मौन हो गये! जुम्मन और जीवछपुर वाली के गवाही से आरोप जो साबित हो चूका था! चौपाल के उस सीमेंट के बने चबूतरे से रह रह कर हुक्के की गुरगुराहट की आवाज़ और दबे स्वर में पार्वती को सज़ा देने की बात उठ रही है!
ओमल ने चौधरी में कानों में फुसफुसाते हुए कहा “ऐ चौधरी जी, गाँव के लोग बहुत आहात है! वे लोग चाहते है विधवा पार्वती को उसके कुकर्म की कड़ी से कड़ी सज़ा मिले! ताकि गाँव के अन्य बहु बेटी ऐसा करने से पहले इस घटना तो याद रखे”!
हाँ ...ओमल भाई! यह हमरा चिकनी गाँव भले ही छोटा है किन्तु इसकी इज्ज़त बहुत बड़ी है! इसलिए गाँव के हित में और गाँववालों को ध्यान में रखकर कुछ सटीक सज़ा देना होगा ताकि आगे कोई इस तरह की हरकत को दुहरा न सके! किन्तु ओमल भाई यहाँ सवाल सिर्फ पार्वती का नहीं है न, यहाँ तो रक्षक बने भक्षक राजन का भी है! वैसे तो यह बहुत गंभीर मसला है परन्तु हल निकल ही जायेगा कुछ न कुछ!
राजन ने चुप्पी के शीशे से पहाड़ को अपने स्वर की कंकड़ी से तोड़ते हुए कहा “अरे महराज आपलोग फैसला सुनाने में इतनी देरी काहे कर रहे है, जब आरोप साबित हो चूका है! वैसे तो बिना सबूत का बेगुनाह भी गुनाहगार हो जाता है, और हमलोगों के पास तो अपनी बेगुनाही का कोई सबूत भी नहीं है! अब यह बेचारी बेबा अपना सबूत कहाँ से लाये, सुना दीजिये बेचारी को फैसला इस बेचारी के आँख की भी पट्टी खुल जाए!”   
पार्वती अब भी मौन थी, उसके पास अपने बेगुनाही का कोई सबूत नहीं था! उस रात को वह घर पर ही थी, न तो कोई जुम्मन आया था, न ही उसकी सास! वह समझ रही है यह सब किया धरा उसकी सास जीवछपुर वाली और चौपाल के चौधरी व ओमल का है! भले ही निशाना बेचारा राजन है पर कंधा तो मेरा ही इस्तमाल हो रहा है! एक औरत के मौन होने की इतनी बड़ी सज़ा वाह रे न्याय ... वाह रे समाज !
आखिर में पार्वती को गाँव से धक्के मार कर बाहर करने और राजन को पंचायत के पद छोड़ने व उसे भी गाँव छोड़ने की सज़ा दी गई! परवतिया मौन है क्योंकि वह ऐसा ही चरित्र की है! वह जुल्म सह लेगी पर उफ्फ्फ नहीं बोलेगी! मगर राजन तो पढ़ा लिखा नौजवान है कम से कम उसे तो इस वक़्त परवतिया का बचाव करना चाहिए था! उसके चलते उसे बदचलन करार दे कर गाँव से निकाला जा रहा है! वह चाहे तो परवतिया को बचा सकता है! किन्तु हुआ वही जैसा पंचायत चाह रहा था!  
वक़्त अपनी नंगी टांगों के सहारे बेधड़क दौड़ता रहा! छह वर्ष के पश्चात् आज फिर परवतिया इन्साफ के लिए खड़ी है!              
आर्डर... आर्डर...
हाँ बोलिए ... परवतिया .. आप क्या कह रही थी? जज ने कोर्ट रूम में लकड़ी के मरियल से हथोड़े को मेज पर पटक कर, वहाँ पर बैठे लोग और वकीलों को शांत करते हुए कहा “किर्पया आप सब परवतिया को कहने दे, वह जो कहना चाहती है ... हाँ बोलो परवतिया ”!
साहिब ... ई छप्पन ने मेरा इज्ज़त लुटा है! परवतिया ने सामने के कटघरे में खड़ा छप्पन की ओर ऊँगली दिखाते हुए कहा!
परवतिया के लगाये गये इस आरोप पर मुज्जफ्फर पुर के छोटे से इस सेशन कोर्ट में फिर से हँगामा हो गया! छप्पन लड़कियों और औरतों का दलाल है, वह शहर के अय्यास और पैसे वाले लोगों के लिए लडकियाँ सप्लाई करता है! दो दिन पहले ही उसकी नजर परवतिया पर पड़ी थी, उसने उसी रात परवतिया को बुला कर धोखे से इज्ज़त लुट लिया! लोग समाज में अपनी छवि साफ़ सुथरा बनाये रखने के लिए वह कोयले का धंधा करता है! परवतिया चौपाल के उस दिन के हादसे के बाद मुजफ्फरपुर चली आई एक नामी वेश्या बन गई, परन्तु वह वेश्या हुई तो क्या हुआ उसके मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाना भी बलात्कार के श्रेणी में आता है!
बचाव पक्ष के वकील ने हँस कर खिल्ली उड़ाते हुए कहा “हाहा ..जनाब, एक वेश्या अपने इज्ज़त के लुट जाने की आरोप लगा रही है! क्या दिन आ गया है, वह भी मेरे मुवक्किल पर जबकि सब जानते है! छप्पन का छवि समाज के बीच काफी साफ सुथरा और नारिहितेशी है!”
साहिब ... कौन से किताब और कौन से कानून में लिखा हुआ है की एक वेश्या की इज्ज़त नहीं होती, और इज्ज्ज़त महिला की ही लुटी जाती पुरुष की नहीं! साहिब मोटे मोटे किताब पढ़ कर भी आपके ये वकील काफी अनपढ़ जैसे बाते करते है! किस जंगल में आपने भेड़िया को बकरी के हितेषी के रूप में देखा है! जरा वकील साहब से पूछिये और लीजिये जवाब ?
परवतिया के सवाल और दलील ने न सिर्फ जज के होठों पर बल्कि वहाँ बैठे सभी तमाम लोगों पर ताला लगा दिया था! किन्तु मुकदमा दलीलों के आधार पर नहीं जीता जाता है, अंधी कानून व्यवस्था को तो सिर्फ और सिर्फ सबूत चाहिए! जो इस समय शहीद के बेबा से वेश्या बनी परवतिया के पास नहीं है! घंटों के बहस के बाद आखिर जज ने फैसला सुनाया!
परवतिया को समाज की गंदगी का संज्ञान देते हुए, जज ने कहा ”परवतिया जैसे औरतें, वैसे तो समाज की गंदगी होती है! किन्तु इन बातों को भी नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता कि कोई औरत अपनी मर्जी से वेश्या नहीं बनती! जहाँ तक मैं समझता हूँ परवतिया भी कुछ ऐसी ही हालातों का शिकार हुई है! आज भले ही परवतिया के पास सबूत नहीं है परन्तु मुझे मालूम है परवतिया जो इल्जाम लगा रही है! वह बिलकुल सत्य है! हम यहाँ गुनहगार को सज़ा देने के लिए बैठ हैं, बेगुनाहों को गुनहगार बनाने के लिए नहीं, और वही सबूत परवतिया के पास नहीं है! इसलिए छप्पन जैसे इज्जतदार आदमी के उपर इल्जाम लगाने के लिए उसे छह महीने की कारावास की सज़ा सुनाई जाती है! यदि परवतिया चाहे तो तीस हज़ार के निजी मुचलके पर कारावास से बच सकती है! वहीँ छप्पन को बाय इज्जत बरी करने का हुक्म दिया जाता है! आपलोगों के सामने मैं अपना इस्तीफा भी रख रहा हूँ, यह मेरे जिंदगी का पहला केश है और आखरी भी है! क्योंकि मैं एक बार फिर इंसाफ नहीं कर सका!
परवतिया के आँखों से आँसू ढब ढब कर गिरने लगा और जज बना राजन उसे देखते हुए कोर्ट रूम से बाहर निकल गया!
राजन इन छह साल में जज बन गया था और किस्मत की मार तो देखिये उसे पहला मुकदमा मिला भी तो परवतिया की! राजन कोर्ट से बाहर आकर तीस हज़ार रूपये जमा कर के परवतिया को छुड़ाया और माफ़ी मांगते हुए कहा “तुम्हारी इस हालात का गुनाहगार मैं हूँ काश कि मैं उस दिन चौपाल में बोल पाता, आज भी मुझे पता था कि तुम सही हो फिर भी मैं कुछ नहीं कर पाया! मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कहूँगा पर अपनी दोहरी गलती सुधारने के लिए तुमसे शादी करना चाहता हूँ ताकि तुम समाज में सम्मान के साथ जी सको, जो मेरे कारण तुमसे छिना गया है!”
हाहाहा .. राजन जी, आप परुषों ने हम नारियों के लिए कोई रिश्ता और जगह सम्मान से जीने के लायक छोड़ा ही कहाँ है! आपको याद हो तो एक दिन के सुहागिन के बाद आपलोगों ने ही मुझे अभागिन कहा फिर बेहया बचलन और अब रंडी बना दिया, आज जब वही रंडी इंसाफ माँगने गई तो कानून ने समाज की गंदगी कहा गया! जाइये जाइये पहले अपने रगों में से औरत के लिए बह रहे गंदगी को निकलाये, हमें सम्मान खुद-व-खुद मिल जायेगा!
                                        

            

No comments:

Post a Comment