Monday, February 3, 2014

सालमोन ...

तुम जिस दिन
अधीर होके आ जाओगी वापस
मेरे प्रेम की मीठी नदी में,
उस दिन
मैं अपना देह और आत्मा
दोनों तेरे हाँथों में रख दूँगा,

मैं ये नहीं पूछूँगा
तुम कहाँ थी इतने दिनों तक
तुमने किया क्या ?
अपने बचपन के गलियों से निकलने क बाद,
वगैरह, वगैरह,

हाँ ये बातें पूछूँगा ज़रूर,

क्या तुम्हें याद है?
अपने बचपन के दिनों की,
उस चौड़ी सी शहतूत की पेड़,
जिसके घनी डालियों के बीच से
मैं तेरे लिए पके शहतूत तोड़ के
ज़मी पे गिराया करता था,
क्या तुम्हें याद है?
वो सफ़ेद खल्ली की पाउडर,
जो हमने कभी दिया था,
तेरे किताबों के बीच रखे
मोर पंख को खिलाने को,
ये कह कर की
जब तक ये मोर पंख ज़िंदा रहेगा,
हम दोनों ज़िंदा रहेंगे,
यूँ ही एक दूसरे के साथ
एक दूसरे के प्रेम में,

ये सुन
अब तुम ये मत कह देना, कहीं,
मुझे कुछ याद नहीं है
मुझे दिखलाओ,
वो शहतूत का पेड़, वो मोर का पंख,
क्योंकि वक़्त के हाँथों
जहाँ हम दोनों जवान हुए है,
वहीँ ये दोनों विलुप्त हो गये है,
हाँ मैं दिखा तो नहीं पाऊँगा वो सब,
पर
मेरे ज़ेहन में वो सारा वाकिया
ज्यों का त्यों
तेरे बालों से बँधी लाल रीबन कि तरह
उस वक़्त से  आज तक बँधी पड़ी है,
साथ ही तेरा वो किताब
मेरे पास यूँ ही सलामत है,
जिसे तुमने आखिरी बार
मुझसे जुदा होते वक़्त दिया था,
ये कहकर की
आज से ये किताब तुम संभालों
मोर पंख में ले जाती हूँ,

तो अब तू बता
जब तुम सालमोन बन वापस आई हो,
उसी जगह मेरे पास
तो क्या तुम ?
हमारी बचपन कि अधूरी पड़ी
प्रेम कहानी को पूरा करोगी,
अगर हाँ तो निकालो वो मोर पंख
रखों उसे उसी किताबों के बीच
ताकि फिर से
हम दोनों इस मोर पंख के बहाने
एक दूसरे के साथ
एक दूसरे के प्रेम को जिए
अपने प्रेम की सादगी और वजूदों की
स्वेत सा परागकण देकर …  !

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