कोई देहलीज नहीं लांघी
अपनी देहलीज बनाने के लिए,
फिर भी आँखों में सज़ा रखे है सपने
अपने घरोंदों में जाने के लिए,
मजबूरियों का हर बारिश गिरा है
हमारे सपनो के छतों पे,
शायद अपने घरोंदो के
मजबूती की नीव बताने के लिए,
हो चला है है यकीं जो हम तेरे बाँहों में है
तो हमारा हर सपना बना है पाने के लिए,
यूँ ही तू भी साथ देते रहने ऐ मोहब्बत के " रसूल "
अब तक तेरी इबारत की है
शायद ऐसी ही ज़िंदगी पाने के लिए ..!!
अपनी देहलीज बनाने के लिए,
फिर भी आँखों में सज़ा रखे है सपने
अपने घरोंदों में जाने के लिए,
मजबूरियों का हर बारिश गिरा है
हमारे सपनो के छतों पे,
शायद अपने घरोंदो के
मजबूती की नीव बताने के लिए,
हो चला है है यकीं जो हम तेरे बाँहों में है
तो हमारा हर सपना बना है पाने के लिए,
यूँ ही तू भी साथ देते रहने ऐ मोहब्बत के " रसूल "
अब तक तेरी इबारत की है
शायद ऐसी ही ज़िंदगी पाने के लिए ..!!
No comments:
Post a Comment