हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,
सूरत देख कर आईनों में जो सोचते है हम खुश हैं
वही फुर्सत में बैठ कर खुद को ढूंढता क्यूँ नहीं है कोई,
इक उम्र गुज़र गई जिनको ख्वाइशों के घर बनाने में
वही तुफानो में घर के छत को आजमाता क्यूँ नहीं है कोई,
हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,
हम तलाश नहीं है किसी के पर खाव्बों के ताबीर ज़रूर होंगे
अपनी ना सही मेरे ख़ुशी के लिए उन खाव्बों में झांकता क्यूँ नहीं है कोई,
अरसों से भेज रखी है जिनको अपने गुजारिशों के ख़त
ज़माने से नज़र छुपा के उसको पढता क्यूँ नहीं है कोई,
अपना हाल बताने ना जा तुम किसी गरीबखाने पे
मेरे हाल ही जानने मेरे इस सुने घर आता क्यूँ नहीं है कोई,
हर घड़ी मेरे यादों में,हिचिकियाँ लेता क्यूँ नहीं है कोई,
मुझसे मेरे तन्हाइयों का सोदा करता क्यूँ नहीं है कोई,
No comments:
Post a Comment