मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है
सुलगता रहा दिल देख के ये मेरा
पत्थरों की इस हवेली ने मेरे चुप्पी की क्या शान दी है
आगजनी की खबर कल अख़बारों में पढ़ा था मैंने
दिल जला था मेरा बस्तियाँ किसी ओर ने फूंक दी है
मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है !!
हुआ क्यूँ नहीं कल कोई बारिश
बचा क्यूँ नहीं घर का कोई कोना
उड़ते राखो ने .. उन चोखटों से ..हवाओं संग ये पैगाम दी है
इस कदर सावन ने बर्बादी को क्यूँ अंजाम दी है ?
कौन है कुसूरवार इसका ..?
किसने पनपते सपनो को बेबसी से जान ली है ?
मेरे घर ने मेरी पहचान की है,
आइनों से लेकर शक्ल मेरा काफ़िर की नाम दी है !!
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