कई बार
किताबों की दुनिया में झाँका
पर
एक मेरे और एक तेरे जैसा
कोई किरदार वहाँ नहीं दिखा
क्या हम-तुम
हकीकत में एक ही बार बनाये गये है
जबकि
वो राम-सीता की जोड़ी
वो कृष्ण-राधा की जोड़ी
मुझे हमारा ही रूप प्रतीत होता है
क्या तुमको
ऐसा नहीं लगता है
लगता होगा
क्योंकी
जब जब तूने मुझे अपने सीने से
लगाया था
मैं खो के तेरे आगोश में
उन्हीं युगों में पहुँच जाता था
वही कृष्ण की सारी
नादानियाँ मैं तेरे साथ दोहराता था
और
तुम राधा की तरह शर्मा के
मेरे भुजाओं में सिमट जाती थी
मैं प्रेम में तेरे बंशी बजाता
और
तू प्रेम गीत गा के उसे साभार करती थी
ये सब क्या था
ये सब
एक मात्र प्रेम का स्पर्श तो नहीं हो सकता
ये और भी कुछ था
और भी कुछ है
जिसे तुझे तुझे महसूसना है
तब नहीं महसूसा
तो अब
हमारे वियोग की वेदना में
अपने रातों के करवटों में
स्याह रात के घुप अंधेरें में
बिस्तरों पे सुबहों के उभरें सिलवटों में
पूस की रात के बिलकते सर्द में
जेठ के चीखती धुप में
सावन के टप-टप गिड़ते बूँदों में
आँगन में अकेले गड़े तुलसी में
इन सबों के छुपे दर्द में
मैं तेरे वियोग को भोगता दिखूँगा
जैसे
मुझे हमेशा तू इन दर्दों में दिखती है
एक बार
बस तू अपने दिल को शांत कर
बैठ जाना
खुले आसमान के निचे
वही यमुना नदी के
पास की बरगद के पेड़ के निचे
जहाँ हमारा तुम्हारा बचपन बिता था
देखना
तुझे फिर सब दिख जायेगा
और फिर से
तुझे वैसा ही प्रेम हो जायेगा
अगर जो ऐसा हो जाये
तो
नदी की धारा पे
मेरे नाम से
एक कस्ती कागज की खतनुमा
बहा देना
मैं अगले दिन ही आ जाउँगा
तुझसे अपना वही अकूट प्रेम माँगने
क्योंकि
बरसों से नदी के दुसरे किनारे पे अकेला बैठा
बहुत ही व्याकुल हो चूका हूँ
बस एक तेरे इंतजार में .. समझी पगली ..
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteमंगल-कामनाएं आदरणीय-
आभार आपका रविकर जी ..
Deleteरविकर जी आपने मेरे इस प्रस्तुति को बुधवारीय चर्चा मंच पर जगह देके .. मेरा मान बढ़ाने के तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ आपका .. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखे !!
ReplyDeleteआपकी लेखनी रंगोली बनाती है
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
आभार आपका विभा जी .. एक पंक्ति में तारीफ़ बहुत खूब लगी आपको भी नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
Deleteok
ReplyDeletekar diya hai -
ab khul raha hai-
Bahut bahut aabhar aapka ravikar ji ..kirpa karke apna mail id mujhe provide kare ..
Delete