वक़्त के
चम्पई लम्हों के दरारों से
झाँकती वो रात
आज बहुत अरसों बाद
ईख की चासनी सी
मेरे अरमानो संग अभिषेक किया
मुझे याद है,
जब में हर रात
ख्यालों में
एक कील तरह हर वक़्त
साथ उनके धंसा रहता था
बेचैनियाँ इतनी सर्पशील थी
की मैं माटी के बिछोने पे भी
तरस के सो नहीं पाता था
उम्र का ये नौसीखियाँ प्रेम
मुझे बिना प्रिय के रातों को
आँख तक मुंदने नहीं देती थी
और मैं फिर
उनके ख्यालों में डूबा
तेरे सायों में चला आता था
वो ठंडक
वो भींगी खुशबू तेरी
बिना निगले कलेजे तक
उतर जाती थी
जैसे मुझे उनके संग बैठने
की इजाज़त मिल गई हो
जिसके संग वक़्त बिताने को
हर लम्हा मेरा तरसता था.
तेरी छोटी सी काया
मुझे उस वक़्त
बहुत ही विशालकाय
लगता था
और
तेरे पहलुओं में गिरे हुए
तेरे चम्पई उपहार(फूल)
मुझे उनकी यादों की तरह
पास बिखरी नज़र आती थी.
जिन्हें मैं अक्सर चुनता
अपने आँसुओं से धोता
और गोधुली के वक़्त
वहीँ कान्हा की मंदिर में
चरणों में कान्हा के
समर्पित कर देता था
ये बोल के की
मेरे ये प्रेम तेरे प्रेम जैसा ही है,
इनको महसूस कर
इसे साकार कर
क्यूँ की मैं अपने राधा के बिना
नहीं रह सकता हूँ,
आज जब मेरे वो सपने साकार
हो रहे है तो
ऐ चंपा की पेड़
तेरा वो चम्पई लम्हों की देन है,
जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता
एक रात आऊंगा
मैं और मेरी प्रिय तुमसे मिलने
बस तू वहीँ इंतजार करना ..
मेरे ये प्रेम तेरे प्रेम जैसा ही है,
ReplyDeleteइनको महसूस कर
इसे साकार कर
सच्ची बात
उम्दा अभिव्यक्ति
आभार आपका बुआ जी .. सादर नमन !!
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