कुछ समेटना चाहता हूँ
आज आपकी खामोशी से
रिटायरर्मेंट पे मिली
तन्हाइयों के पेंशन से
आपके रेडियो के आल इंडिया
चैनेल से
सुबह के अख़बारों के पन्नों से
और न जाने क्या क्या
आपके ख्यालों से
पर मैं सोचता हूँ
क्या ये सब मैं समेट पाउँगा "बाबूजी"
शायद कभी नहीं
क्योंकि मुझे हमेशा याद आता है
आपका वो विशाल हिर्दय
जिसके नग्न उँगलियाँ पकड़ कर
मैंने जीवन पथ में चलना सीखा
आपके कंधों पे बैठ कर
जहाँ बोझा ढ़ोना सीखा
आप के तीखे तल्ख भरे
डांट के स्वर सुन
खुद को संभालना सीखा
न नहीं मैं कभी नहीं समेट पाउँगा
"बाबूजी"
सच तो ये है
आज मैं बिखरना चाहता हूँ
आप के
गंगा जैसे पावन चरणों में
खुले आकाश जैसे सीने में
उम्र की इस ढ़लती साँझों में
एक आस से मेरी और घूरती
आपकी इन शांत पड़ी आँखों में
क्योंकि
आज की आपकी ये दशा देख
मुझे
मेरे बचपन की याद आती है
कैसे आपने मेरे हर विवशता को
अपने वजूद से पुचकारा था
कर लेने दो
आज मुझे फिर अपने मन की
उन दिनों की तरह फिर मत रोकना
क्योंकि आप बूढ़े हो गये हो
पर मैं आज भी बच्चा हूँ
जिसको आपने एक उम्र से
अपने पसीने से है सींचा
जहाँ
कल आप मेरा खिलौना थे
आज मैं आपका खिलौना बनना चाहता हूँ
वही रेडिओ , वही अखबार
वही उम्र भर की कमाई का खुशियों का पेंशन ...!
वह्ह्ह गजब का लेखन ..उम्दा भाव ..काश हर बीटा युहीं ही बिखर जाये माता पिता के चरणों में ... बधाई अजय सुभकामनाये
ReplyDeleteआज मैं बिखरना चाहता हूँ
आप के
गंगा जैसे पावन चरणों में
खुले आकाश जैसे सीने में
उम्र की इस ढ़लती साँझों में
एक आस से मेरी और घूरती
आपकी इन शांत पड़ी आँखों में
सुनीता अग्रवाल जी आपका तहेदिल से आभार .. आप सबों का स्नेह और आशीर्वाद ही है जो यहाँ तक पहुँचा की आपका तारीफ और प्यार पा सका .. बस यूँही स्नेह और आशीर्वाद अपना बनाये रखे !!
ReplyDeleteअद्भुत .....ईश्वर ये भाव बनाए रखे , पिता को यूँ समझ पाना एक उपलब्धि है ....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका डॉ. मोनिका शर्मा जी ..
Deleteमंगलवार 15/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ की आपने मेरे इस रचना को "पुरानी-हलचल" पे जगह दिया है .. अपना आशीष यूँ ही बनाये रखे विभा जी ..!!
Delete.उम्दा भाव.........
ReplyDeleteआभार आपका भी कौशल लाल जी ..
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