मेरे वो प्रेम में दिए
तोहफे और ख़त जैसे सारे दस्तावेज
संभाल के रखना
जिसको तुम अक्सर रातों को
अपने तन्हाई में देखा करती थी
खुद को भूल फिर मेरे ख्यालों में
रातों को जगा करती थी
कभी कभी रह रह कर
उन विरहा की काली रातों में
मेरे में भी बदन में सिहरन हो उठता था
मैं तनिक हैरान नहीं होता था
तुरंत ही समझ जाता था
तूने ज़रूर आज फिर
मेरे दिए दस्तावेज का धुल झटका होगा
अपने सूक्ष्म भावनाओं
की नग्न वेदना की तपिश में
सोम्य हाँथों से स्पर्श किया होगा
पर
इस स्पर्श की अनुभूति
जितना मुझे तेरे यादों में धकेला था
इनसे कहीं जादा
तुमको इसके गहराई में उतारी होगी
ये तो तय है ..
क्योंकी
उन तमाम रातों को
चाँद आसमा से ओझल रही
मैं और मेरी आँखें टकटकी लगा के
सारी रातें उन्हें बादलों में खोजता रहा
पर वो नहीं मिली
आज एहसास हो रहा
उन्हीं बातों का
की वो आसमा का चाँद कोई और नहीं
तेरा ही एक स्वरूप था ..
जो हर रातों को
अपने प्रकाश के सहारे मुझसे
मिला करती थी
मेरे बदन से लिपट कर
तेरे साथ होने का एहसास दिया करती थी
भले ही कुछ नहीं बोला करती थी
पर उस समय वो एहसास मात्र ही काफी
होता था मेरे लिए
सारे दिन का थकान मिटाने के लिए
शायद
तू भी इतना ही चाहती थी
तभी तो उन दिनों मुझे भी
रातों को खुले आसमा के निचे
सोने की आदत सी हो गया था
लेकिन
आज फिर आसमा में
जब तुझको नहीं देख रहा हूँ तो
अच्छा सा लग रहा है
क्योंकी
रोज मिलते रहना ही प्रेम नहीं है
कभी कभी पुराने तोहफे और ख़त
जैसे दस्तावेज से धुल झटकना
भी प्रेम है ...
तेरे मुँह से ही सुना था
तेरा हर तोहफे ..
तेरे हर ख़त जैसे दस्तावेज को स्पर्श करना
मुझे तेरे बदन के स्पर्श की अनुभूति देती है,
सत्य था तेरा वो कहना ..
आज मैंने भी वही किया है ..
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीय-
आपका बहुत बहुत आभार .. स्नेह बनाये रखे !!
ReplyDeletebhut sundar
ReplyDeleteAapka bahut bahut aabhar Charan Singh Rajput ji ..
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