न जाने जुब़ा ने उनको क्या-क्या कहा
कभी मगरूर तो कभी तंगदिल कहा,
पूछ के दिल से आज,जब उनकी एक ओर तस्वीर बनाई,
तो हकीकते मेरे दिल ने कुछ ओर ही कहा !!
वो हँसती है ओढ़ के नकाब अपने आंशुओं पे , -२
ओर एक हम है की उनके दर्द को ही मगरूर कहा,
वो जीती है मेरे बिना अक्सों(परछाई) में,-२
ओर एक हम है की उनके तन्हाईयों को ही तंगदिल कहा,
माफ़ करना ऐ खुदाया जो भी उनके गुस्ताखियों में कहा,
न जाने जुब़ा ने उनको क्या-क्या कहा,
कभी मगरूर तो कभी तंगदिल कहा !!
वो नाज़ करते रहे हम पे बे नाज़ बनके,-२
ओर एक हम है की उनके नाज़ बनके भी बे नाज़ कहा,
समझ में आया जाके अब की क्या कहना है तुझको,
इसलिए तो मेरे दिल ने उनको आज फिर से जान कहा,
माफ़ करना ऐ खुदाया जो भी उनके गुस्ताखियों में कहा,
न जाने जुब़ा ने उनको क्या-क्या कहा,
कभी मगरूर तो कभी तंगदिल कहा !!
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteShukriya Sushma ji ...
ReplyDelete