मुझे आज भी बहुत याद आती है वो,
कभी फज़र में ओस की बूंद की तरह,
कभी असर में खुदा इबादत की तरह,
ज़ेहन के गलीचों में इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं फिर भी यादों में मिल जाती है वो ...
आलम हुआ पड़ा है इस दिल का यूँ
चलता हूँ सुनी सड़क पे खुद को समझ कर अकेला,
साथ देती कदमो में मिल जाती है वो ...
ना साज खलिश की परवाह नहीं करता दिल
अब तो ये सोच कर
की उम्र गुजारनी है तन्हाईयों के तले,
पर उसी तन्हाईयों को धुंध बनाके अपने यादों से,
ज़िंदगी का साथ देती मिल जाती है वो ....
बड़ी ही जालिम है ये याद उनकी,
जो बिना दस्तक किये ही दिल में चली आती है,
सोचा कई बार की रातों में छुप कर सो जाऊ उनसे,
पर आँखे बंद करने पे
ख्वाब बनके नींदों में मिल जाती है,
ज़ेहन के गलीचों में इस कदर पेवस्त है वो,
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं फिर भी यादों में मिल जाती है वो .. !!
मांगता हूँ खुदा से कुछ नहीं फिर भी यादों में मिल जाती है वो .. !!कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteशुक्रिया सुषमा जी !!
ReplyDeleteyaado ki behtrin abhiwyqti.......har pal zindgi k saath mil jaati wo......sabd kam pad rahe h aapki taarif m
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