हम खलिश मुफलिशी में भी मोहब्बत के दीनार बाँटते रहे,
वो इकलोते ज़िंदगी के जागीरदारी में भी बटुए सिलाते रहे,
हमने तमाम उम्र अपने को ये कह कर कोस लिया,
और एक वो हैं की अपना ही चेहरा मुझसे छुपाते रहे,
इतने पे गर जो मैं नाफरमान बन जाऊं तो गम ना होगा,
इलज़ाम सर आये सितमगढ़ का तो वो कम ना होगा,
क्यूँकी खासा प्यास से इश्क़ के धुप में हम घुलते रहे,
और एक वो है की मेरे तस्वीरों को अपने अश्क से पोछते रहे !!
वो इकलोते ज़िंदगी के जागीरदारी में भी बटुए सिलाते रहे,
हमने तमाम उम्र अपने को ये कह कर कोस लिया,
और एक वो हैं की अपना ही चेहरा मुझसे छुपाते रहे,
इतने पे गर जो मैं नाफरमान बन जाऊं तो गम ना होगा,
इलज़ाम सर आये सितमगढ़ का तो वो कम ना होगा,
क्यूँकी खासा प्यास से इश्क़ के धुप में हम घुलते रहे,
और एक वो है की मेरे तस्वीरों को अपने अश्क से पोछते रहे !!
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