वो रंजिशों कि क्या तल्ख रात थी,
कोई शहर में था और मैं बेख़बर रह गया।
ऐसे में हादसों को क्या कोसता मैं,
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।
वो रंजिशों कि क्या तल्ख रात थी,
कोई ख़बर में था और मैं बेख़बर रह गया।
ये जुल्म इम्तहां था या फ़कत बेवफाई
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।
ग़मख़ार मेरे दिल की वफ़ा तो देखो,
याद उन्हीं को किया जो उसे रुलाता रह गया।
छोड़ के दामन गया जो कोई गैर बन के,
साँसे उन्हीं के नाम का माला जपता रह गया।।
आँखें सुनी सड़क पे ढूँढता रहा अक्स जिनका,
चर्चा उन्हीं का चौराहों पे सरेआम होता रह गया।
दुआ वापस लौट आई है उनके चौखट से,
जहाँ नेमतों का साँझ सुबह होता रह गया।।
न मदीना जा पाया न महजिद कि गली,
इश्क़ में जब से मैं ख़ुदा को देखता रह गया।
कोई सफ़ीना न उतार पाया जिंदगी के लहरों पे, फिर कभी,
बेमुरवत डूब के तुममें जब से और डूबता रह गया।।
कोई शहर में था और मैं बेख़बर रह गया।
ऐसे में हादसों को क्या कोसता मैं,
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।
वो रंजिशों कि क्या तल्ख रात थी,
कोई ख़बर में था और मैं बेख़बर रह गया।
ये जुल्म इम्तहां था या फ़कत बेवफाई
कोई नज़र में था और मैं बेनज़र रह गया।।
ग़मख़ार मेरे दिल की वफ़ा तो देखो,
याद उन्हीं को किया जो उसे रुलाता रह गया।
छोड़ के दामन गया जो कोई गैर बन के,
साँसे उन्हीं के नाम का माला जपता रह गया।।
आँखें सुनी सड़क पे ढूँढता रहा अक्स जिनका,
चर्चा उन्हीं का चौराहों पे सरेआम होता रह गया।
दुआ वापस लौट आई है उनके चौखट से,
जहाँ नेमतों का साँझ सुबह होता रह गया।।
न मदीना जा पाया न महजिद कि गली,
इश्क़ में जब से मैं ख़ुदा को देखता रह गया।
कोई सफ़ीना न उतार पाया जिंदगी के लहरों पे, फिर कभी,
बेमुरवत डूब के तुममें जब से और डूबता रह गया।।
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