मैं और मेरी प्रेयसी
मेरे कमरे के चार दीवारों में रहते है,
जिन चार दीवारों की भूमिका
मेरे और उसके प्रेम जैसी अलग अलग है,
जहाँ कमरे के एक दिवार पे
आने वाले ज़िंदगी के अविकसित से सपने है,
वही दूसरी दिवार पे हमारे
एक दशक की प्रेम का जंग लगी हुई यादें
जिसे हम लोग हर रोज साथ मिल कर साफ़ करते है,
तीसरे दिवार के क्या कहने
वहाँ मेरी और उनकी तन्हाईयाँ दर्ज़ है
जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती
चौथे दिवार पे हम दोनों खुद से खड़े है
जहाँ से हम प्रायः इन तीनों दीवारों को ताका करते है
ये सोच कर किसी दिन यह कमरा एक घर बन जायेगा,
और हम दोनों इसके आगोश में खो कर
प्रेम कि पराकास्ठा को छू आयेंगे।
मेरे कमरे के चार दीवारों में रहते है,
जिन चार दीवारों की भूमिका
मेरे और उसके प्रेम जैसी अलग अलग है,
जहाँ कमरे के एक दिवार पे
आने वाले ज़िंदगी के अविकसित से सपने है,
वही दूसरी दिवार पे हमारे
एक दशक की प्रेम का जंग लगी हुई यादें
जिसे हम लोग हर रोज साथ मिल कर साफ़ करते है,
तीसरे दिवार के क्या कहने
वहाँ मेरी और उनकी तन्हाईयाँ दर्ज़ है
जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती
चौथे दिवार पे हम दोनों खुद से खड़े है
जहाँ से हम प्रायः इन तीनों दीवारों को ताका करते है
ये सोच कर किसी दिन यह कमरा एक घर बन जायेगा,
और हम दोनों इसके आगोश में खो कर
प्रेम कि पराकास्ठा को छू आयेंगे।
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