मेरे हथेलियों के लकीरों से उड़ते
प्रेम पुष्प के परागकण, अवश्य ही,
तेरे नथूनों को तर कर रहे होंगे,
जिसकी मादकता में तेरी देह
निश्चित ही चंदन की भाँति महक रही होगी ,
तेरी रूह,
गाय के उस भूखे बछड़े की भाँति
बँधे खूँटे से खुलकर
मेरे अधरों को चूमना चाह रही होगी,
जैसे वो कई जन्मों से मेरे देह की भूखी है,
ये कोई काल्पनिक एहसास नहीं है,
मेरी प्रेयसी जिनको तू अपनी मौन हँसी देकर,
प्रेम की कविता की तरह पढ़कर बस छू ले,
मैं शरद की इस सुबह में,
अगर इन सुखद एहसासों को
कागज के सफ़ेद पन्नों पे उच्चारित कर रहा हूँ,तो
इसमें, मेरी एक अभिलाषा है, कि
तू इस कंपकपाती सी शरद की सुबह में
मुझको अपने देह की अलाव जैसी गर्माहट दे सके,
अपने हंथेलियों की घर्षण की ताप दे सके,
प्रेम की,
उन सूक्ष्म एहसासों का आगोश दे सके,
जिसमे मैं एक प्रेमी,
अपने कविमन की वो उकलाहट
इन सफेद पन्नों पे प्रस्तुत कर सकूँ,
जिससे संसार की समस्त प्रेमी और प्रेमिकाएँ
इस प्रेम की कविता को पढ़कर
इस सुबह अपने अन्तःमन में प्रेम की तपिश को
महसूस सके,
बोलो मेरी प्रेयसी,
तुम क्या कहती हो?
क्या हमदोनों को अवसरवादी बन जाना चाहिए?
कुछ लम्हों के लिए,
प्रेम की प्यासी भुजाओं में समाने के लिए,
प्रेम की नाजुक पुष्पों पे नंगें पावं रखने के लिए,
साथ ही संसार की उन समस्त
प्रेमी प्रेमिकाओं की सम्मान का संवाद बनने के लिए,
जिसके लिए
आज वो सारे कई जन्मों से
सिर्फ देह बदल रहे है, हमारे तुम्हारे जैसे।
प्रेम पुष्प के परागकण, अवश्य ही,
तेरे नथूनों को तर कर रहे होंगे,
जिसकी मादकता में तेरी देह
निश्चित ही चंदन की भाँति महक रही होगी ,
तेरी रूह,
गाय के उस भूखे बछड़े की भाँति
बँधे खूँटे से खुलकर
मेरे अधरों को चूमना चाह रही होगी,
जैसे वो कई जन्मों से मेरे देह की भूखी है,
ये कोई काल्पनिक एहसास नहीं है,
मेरी प्रेयसी जिनको तू अपनी मौन हँसी देकर,
प्रेम की कविता की तरह पढ़कर बस छू ले,
मैं शरद की इस सुबह में,
अगर इन सुखद एहसासों को
कागज के सफ़ेद पन्नों पे उच्चारित कर रहा हूँ,तो
इसमें, मेरी एक अभिलाषा है, कि
तू इस कंपकपाती सी शरद की सुबह में
मुझको अपने देह की अलाव जैसी गर्माहट दे सके,
अपने हंथेलियों की घर्षण की ताप दे सके,
प्रेम की,
उन सूक्ष्म एहसासों का आगोश दे सके,
जिसमे मैं एक प्रेमी,
अपने कविमन की वो उकलाहट
इन सफेद पन्नों पे प्रस्तुत कर सकूँ,
जिससे संसार की समस्त प्रेमी और प्रेमिकाएँ
इस प्रेम की कविता को पढ़कर
इस सुबह अपने अन्तःमन में प्रेम की तपिश को
महसूस सके,
बोलो मेरी प्रेयसी,
तुम क्या कहती हो?
क्या हमदोनों को अवसरवादी बन जाना चाहिए?
कुछ लम्हों के लिए,
प्रेम की प्यासी भुजाओं में समाने के लिए,
प्रेम की नाजुक पुष्पों पे नंगें पावं रखने के लिए,
साथ ही संसार की उन समस्त
प्रेमी प्रेमिकाओं की सम्मान का संवाद बनने के लिए,
जिसके लिए
आज वो सारे कई जन्मों से
सिर्फ देह बदल रहे है, हमारे तुम्हारे जैसे।
nice one........
ReplyDeleteplz visit here....
''anandkriti''
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आभार आनंद ..
Deleteबहुत अच्छी रचना है !
ReplyDeleteदेवदत्त प्रसून जी आभार ...
Deleteutam_***
ReplyDeleteआदित्य टिक्कू आभार आपका भी तहेदिल से ...
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