बातों ही बातों में ...
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1)
बारिश की बुँदें गिर कर जमीं पर जब करती है शोर,
यारा तेरी कसम तू याद आती है, याद आती है और !!
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2)हर तरफ़ मुबसूत है तू और तेरी यादें,
फिर भी मुतजसिस बना मैं और मेरी आँखें !!
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3)
मनाना सीखा नहीं कभी फ़िर भी खुद को टोक देता हूँ,
जब-जब तेरी याद आती है तो चंद साँसे रोक लेता हूँ ।।
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४)
बार-बार टूटकर जुड़ना अब नहीं होता,
तेरे शहर में मेरा अकसर अब ठहरना नहीं होता,
फिर कब होगी दीदार तेरे चाँद से चहेरे की,
इक यही बात पर अब ऱोज-ऱोज मिलना नहीं होता !!
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५)
हर दफ़ा एक आस छोड़ कर आया हूँ तेरी आँखों में,
जब भी मिले हम तो एक तसव्वुर दिखे तेरी साँसों में !!
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6)
कुछ अच्छे भले बेपरवाह ख्याल निकल आये है,
बड़े दिनों के बाद कुछ यूँ हममें आप निकल आये है !!
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७)
चाहे कितने क़सीदे काढ़ ले सदके में उनके
मोहब्बत तो आज भी तन्हा ही है दोस्तों !!
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८)
जब किसी मोड़ पर आकर मेरे लब ख़ामोश हो जाए,
उस वक़्त तुम अपने हिस्से की मोहब्बत मेरी आँखों से ले जाना !!
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९)
तुमसे मिलना रोज होता है दिल की बस्ती में,
काश मेरे शहर में दिल सा कोई हिस्सा होता !!
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१०)
रात भर ख्यालों का सिलसिला चलता रहा
बात बात पर करवट और दिल धड़कता रहा,
एक भी गली कुचा हमने छोड़ा नहीं सदके में
निशां तेरे क़दमों के हमे जहाँ-जहाँ मिलता रहा !!
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११)
हदे अक्सर मैं दिखू तुझसा सब कहे,
माँ तो नहीं मगर माँ जैसा बन जाना सब कहे !!
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१२)
हमसे न कर इतनी मोहब्बत कि हम जी न पाए,
दर्द दिल में रख मुस्कुरा के भी हाल कह न पाए,
होगी बहुत रुसवाई जो इल्म होगा इसका तुम्हें तो
फिर इल्ज़ाम न देना हमें कि हम कुछ कह न पाए !!
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१३)
सिलसिला गुफ्तगू तुमसे ख़त्म न हो,
पहुँच कर तेरी चौखट पर हम कम न हो,
हसरते ग़ाहे जलती रहे, बुझती रहे भला
मगर रौशनी मोहब्बत की कभी कम न हो !!
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१४)
नाजुक है मोहब्बत दिल की तारों से जो जुड़ा है,
संभाल कर रखना कदम इश्क़ उमीदों पे खड़ा है,
न हम कभी खफ़ा होंगे न तुम कभी नाराज होना
ये साँसें क्या हमारी हर दुआ तक तुमसेे जुड़ा है !!
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१५)
न ही सलीका और न ही बिछड़ने का क़ायदा पता था उनको,
तभी तो आज फिर जाते वक़्त वो खुद को मुझमे छोड़ गई !!
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१६)
कितना खौफ़ दर्ज होती है रात की अँधेरे में,
पूछो उन जुगनुओं से जो हर वक़्त जलता है !!
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१७)
कहाँ मिलता सुकून अब तेरी जुदाई में?
नींद चैन सब गंवाया इश्क़ की खुदाई में,
न नसीहत ही काम आई, न तालीम वफा,
रोज मरता रहा फिर भी बढ़ता रहा नशा।
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१८)
वो खुद से मोहब्बत करने लगे है आजकल,
ये जान शहर के आईने टूटने लगे है पल-पल,
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१९)
मिलकर भी तुझसे जैसे ढ़ेरों बात रह जाती है,
एक कसमकस और कई आस रह जाती है,
एक कसमकस और कई आस रह जाती है,
न जाने कब ये सिलसिला थम कर झूमेगा,
इन्हीं जज्बातों पर कई मुलाकात रह जाती है,
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इन्हीं जज्बातों पर कई मुलाकात रह जाती है,
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२०)
मिलता नहीं कहीं सुकूं तेरे पहलुओं के अलावा,
जैसे तू ही सिर्फ़ हकीकत है बांकी सब छलावा,
जैसे तू ही सिर्फ़ हकीकत है बांकी सब छलावा,
पागल कहते है अब तो हमको ये दुनिया वाले,
पता नहीं तेरे नशे में किसको ऐसा क्या कह डाला !!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया विभा बुआ, पांच लिंकों पर मेरी रचना को रखने के लिए, स्नेह बनाये रखे!!
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/MadanMohanSaxena