Wednesday, July 13, 2016

"लड़की और औरत"

मैंने देखा है,
तेरी धमनियों में 
रोज दम तोड़ती लड़की को,
और तेरा औरत बन जाने के पश्चात
दिन रात बढ़ती हुई परेशानियों को,
कैसे “परिवार, बच्चे और घर” की निर्वाह में
खुद कीे रक्त में घुल-मिल कर
तुम अब जीते जी प्रवाहित हो रही हो
वो जो “फ़िक्र” है
काश, ये सिर्फ़ उनके लिए नहीं
तेरे खुद के लिए भी होती
तब मुझे ख़ुशी होती
की तू औरत बनके भी जिन्दा है
वरना मैंने तो अब
औरतों को सिर्फ़ मरते देखा है
मैं निकाल तो नहीं सकता
तुझे तेरे किरदार से
अलबत्ता मेरे पास एक ख्वाहिश है
तुझ जैसी मर रही औरतों को लड़कियाँ बन जाने के लिए
की किसी सुबह जब तू उठे तो खूब बारिश हो
तू उन बारिशों में भींग कर धो डालना
अपनी एक-एक परेशानी
जी लेना उस दिन खुद के लिए
कर लेना जो तेरे दिल करे
पहन लेना जो मन भाये
गा लेना जो दिल में आये
किन्तु
सब मैं संवाद सिर्फ़ इतना रखना
मुझे हक़ है
“मैं औरत बनकर भी लड़की बनी रहू”
क्योंकि तेरा परिवार तब ख़ुशहाल होगा
जब एक औरत में जिन्दा रहेगी लड़कियाँ ..!!

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