Saturday, December 27, 2014

बड़े मंहगे थे, बड़े मंहगे थे !!

बड़े मंहगे थे
वो कागज की कश्ती
जो मैंने बचपन के जागीरदारी में कभी
बारिशों के पानी पे उतारे थे

बड़े मंहगे थे
वो सफेद खल्ली के पाउडर
जो मैंने बचपन के अमीरी में कभी
किताबों के पन्नों के बीच रखे
मोर पंख को खाने के लिए पसारे थे

बड़े मंहगे थे
वो नेमचुस से कैंडी
जो मैंने बचपन में बड़प्पन के तफरी में कभी
कुछ खाए थे कुछ दोस्तों बाँटे थे

बड़े मंहगे थे
वो लाड लगाने के दिन
जो मैंने बचपन में ममता की नगरी में कभी
माँ संग सीने से लग के बिताये थे

बड़े मंहगे थे
वो हर लम्हा पापा का चिल्लाना
कि यही हाल रहा तो
तू कभी कुछ नहीं कर पायेगा
जो मैंने बेपरवाह बन कभी
हर लम्हा यूँ ही उड़ाये थे

बड़े मंहगे थे, बड़े मंहगे थे

बड़े मंहगे थे
वो मेरे शहर की गलियां
जहाँ मैंने हर सबक जिंदगी के कभी
हँस हँस के सीखे थे

बड़े मंहगे थे
वो इश्कजादे से आशिक़ी के दिन
जो मैंने बचपन से निकल के
जवानी एक फूल सी प्रेमिका के संग बिताये थे

बड़े मंहगे थे
वो विल्स के दिन
जो मैंने जवानी में कभी
उसी फूल सी प्रेमिका के याद में
धुआँ धुआँ करके उड़ाये थे

बड़े मंहगे थे
वो दोस्तों के महफ़िल
जो मैंने खुद के पैसे खर्च करके कभी
उनको अपनी टूटी शेर व शायरी सुनने को जमाये थे

बड़े मंहगे थे
वो पल
जिस पल मैंने खुद के जेहन में कभी
अपने शहर अपनी गली छोड़ जाने का ख्याल लाये थे

बड़े मंहगे थे, बड़े मंहगे थे !!

No comments:

Post a Comment