Friday, January 3, 2014

आई प्रॉमिस ...

मेरे मेज पे
फ्रेम में पड़ी तेरी तस्वीर
और उस
तस्वीर से झाँकती तेरी आँखें
जो मुझे घूर रही थी
और मैं तुम्हें,

एक अजीब सी चुप्पी फैली हुई थी,
कमरे में
बिस्तर पे भी सिलवटें उकरी हुई थी,
मेरी डायरी के
कुछ पन्ने फटे हुए थे,
जिन पन्नों के टुकड़े
फर्श पे फैले हुए थे,
पास पे रखा गिटार के कवर खुले थे,
पर उसके सुर शांत थे,
टी वी ऑन था,
पर आवाज़ म्यूट की हुई थी,

लेम्प के दूधिया रोशनी थी,
पर सुर्ख अँधेरा मेरे अंदर था,

दूर लेम्प कि रोशनी में
दो मेरे चाहने वाले पतंगे
आपस में बाते कर रहे थे,
आज इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई?
आज इस आशिक़ को हुआ क्या है?
लगता है फिर से
गर्ल फ्रेंड से लफड़ा हो गया है,
तभी पीछे से एक जीभ ने
दोनों को लपेट कर अपने मुँह में रख लिया
और डकार लगाते हुए बोला
ये अंदर कि बात है चूजे,

इत्ते में,
मेरे मोबाईल में रिंग हुआ
कॉल पिक किया था तो
मेरी प्रियसी
प्लीज सॉरी जानू
प्लीज सॉरी जानू प्लीज प्लीज
मुझे गलती हो गई मुझे माफ़ कर दो,
ये सुन
मेरे चेहरे पे मुस्कान उतर आई,
और सारा मंजर फिर से रंगीन हो गया,

ये तेरे लिए है,
तू सुन मेरी प्रियसी
तेरे बिना मैं और मेरे कमरे की
सारी चीजें उदास हो जाती है,
तो प्लीज प्लीज
तू कभी मुझे नाराज मत हुआ कर
आई लव यू जानू एंड सॉरी
कि मैंने भी
तुमको गुस्सा दिला दिया था तभी
तू नाराज हो गई थी,
अब ऐसा मैं भी कभी नहीं करूँगा,
आई प्रॉमिस
कान पकड़ता हूँ
मुझे भी माफ़ कर दे तू ....

2 comments:

  1. काफी उम्दा रचना....बधाई...बेहतरीन चित्रण....
    नयी रचना
    "एक नज़रिया"
    आभार

    ReplyDelete