Wednesday, January 22, 2014

तेरे प्रेम में ...

तेरे प्रेम में
एक सलीक़ा है,
एक लहजा है,
एक धैर्य-एक क्षमता है,
और मेरे प्रेम में
बस पागलपंती
पर पागलपंती से
ये दुनिया नहीं चलती
और जीवन नहीं कटता।

काश की
तेरे प्रेम में,
मैं बस
इतना तुझसे सीख पाता,
तो मैं भी
एक सलीके का इंसान बन जाता,
लहज़े का पोशाक पहनता,
धैर्य का टाई लगता, और
अपने क्षमते से इतराता।

पर
ख़ैर छोड़ो,
अपने हिस्से की ये पागलपंती ,
एक सभ्य इंसान की
परिभाषा से तो अलग है,
ये मैं जान चुका हूँ,
इसलिए
तेरे लिए भी
यही अच्छा होगा,
तू भी मुझे जान ले,
मैं खुद को बदलू
इससे अच्छा तू खुद को बदल ले,

क्योंकि
सच्चा प्रेम पागल बना देता है,
और जो पागल होते है,
वो सिर्फ पागलपंती करते है,
जैसे मैं करता हूँ,
तेरे प्रेम में पागल होके,
वैसे तू भी कर
मेरे प्रेम में पागल होके, पागलपंती !!

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