Friday, September 20, 2013

अर्जिया भरे ख़त ...



यूँ ठंडे बस्ते में न डाला करो
तुम मेरी अर्जियों को
वक़्त बेवक्त निकाल के
पढ़ लिया करो कभी
हम प्रेम करते है तुमसे
तभी तो लिखते रहते है
ये अर्जिया भरे ख़त तुमको ..

जिसको कभी मैं
रातों को जग
जुगनुयें पकड़ के लिखता हूँ,
कभी अहीर भेरवी के सुबह में
पँछियों के शोर के संग लिखता हूँ,
कभी साँझ के सिंदुरी आलम में
सूरज के डुबकी के संग लिखता हूँ,

और
न जाने कैसे कई
नजारों के संग
जिसकी तुमने कभी ताबीर नहीं की होगी
ऐसे मंजरों के संग लिखता हूँ,
और तुमने
उन सारे खतों को
यूँ रख छोड़ा है ...

मेरी बात मानो
आज अपनी व्यस्त ज़िंदगी से
वक़्त निकाल के पढ़ो
मेरे उन खतों को ..

देखना तेरा रोम-रोम
न सिहर उठे तो कहना
अगर तेरे अंदर प्रेम की वही
लालसा न जगी तो कहना,
क्योंकी मैंने इनमे
रखे एक एक एहसास में
तुझको महसूसा है
फिर अर्जियां लिखा है,

बस
पढ़कर महसूस कर
स्वीकार लेना ...

मैं और मेरा प्रेम
यूँ ही निर्जीव से सजीव हो जायेंगे ...

2 comments:

  1. वाह - बहुत सुंदर
    आशीष और हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. आभार आपका बहुत बहुत राकेश कौशिक जी ..

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