Thursday, September 19, 2013

काश .... !



बहुत ही भोली हो तुम
जो आज भी
मेरे दिल को नहीं समझती हो
मैं वही मगरूर सा आशिक़ हूँ
मेरा पेशा भी वही है
एक चित्रकार का
जो दुनिया के लिए तस्वीरें तो बनाता है
पर खुद के लिए कभी कुछ नहीं करता
तुम खुद भी उसी तस्वीरों की एक उपज हो
जिसे मैंने खुद के दिल के
सूक्ष्म रंगों से सजाया था
ताकि दुनिया तेरे वजूद को
हर रंगों में ढाल के अपना सा महसूस कर सके

मुझे पता है
मैं एक हद तक
सफल हुआ हूँ
अपने इस चित्रकारी में
पर एक सत्य ये भी है की
मैंने जब तेरी तस्वीर बनाई
तब से तुझे प्यार कर बैठा हूँ
अपने मगरूरपन को ताक पे रख कर

मैंने फिर हर दिन घंटों बीता के
तुझसे न जाने क्या-क्या बातें की
और तुम चुपचाप उसे सुनती रही
मुझे लगता था
तुम मेरा इतना प्रेम देख
मेरी बातें सुन
खुद ही बोल पड़ोगी
पर कई अरसे बीत गये
तुम न बोली

और
मैं अपने मगरूरपन में
तेरी वही तस्वीर बेच डाली
अब खल रहा है मुझे
अपना यही मगरूरपन
जब तुम दूसरों का हो गई हो
कोई दूसरा तुमपे अपना अधिकार
जताता है

काश !
तुम मुझे समझ पाती
और उस वक़्त बोल लेती
फिर आज हम ऐसे नहीं होते
अपने ही रंगों से खुद को रंगा हुआ
महसूस करते  ..

खैर छोड़ो  .. तुम्हें क्या .. !!

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