Sunday, March 17, 2013

लिख दू ...

एक पंक्तियों में
ग़ज़ल लिख दू
हाल अपनी मोहब्बत
उसमे सब सरल लिख दू

में खुद को ठोस चट्टानों सा
अपनी जीनत को
पानी सा तरल लिख दू
वो बहती जाये बहती जाये
निराधार नदी सा
ओर मैं उसमे खुद को
ईच्छाओं का कमल लिख दू

और लिखू ..

मोहब्बत के बाज़ारों में
अपनी आसुओं का
हर असल लिख दू
लौट के जो आई कभी दुआएं
उनकी चोखट से
उनकी भी फज़ल लिख दू

लिख दू हर मुमकिन जो हो

एक बार एतबार के
नामो का खुद को
खेतों का फसल लिख दू
काट ना सके फिर
उसको ऐसा कोई गरल लिख दू .. !!


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