Sunday, November 13, 2011

कोई अपना नहीं है !!

कोई अपना नहीं है इस दुनिया के भीड़ में,
आस्तीन में  खंजर लिए बैठे सब मोके की तहजीर में,
क्या दोस्त क्या दुश्मन क्या अपना क्या पराया सब के सब जुड़े है एक ही जंजीर में,
गलतियाँ तो मैंने की जो सब को अपना समझ बैठा,
अपने ही हाथों से अपनी दिल के मासूमियत को लुटा बैठा,
हिसाब किया जो आज हमने इनके जख्मों का,
खुद में उलझ गया मनो सतरंज का हरा हुआ वजीर में,
कोई अपना नहीं है इस दुनिया के भीड़ में,
आस्तीन में  खंजर लिए बैठे सब मोके की तहजीर में !

बेमतलब की लगती है ये दुनिया,
हर साक पे बैठा है उल्लू,
भरोसों का खून करती दिखती है जहाँ ओर उनकी ये टहनियां,
कर के क़त्ल मेरे सादगी का बढ़ा ले एक ओर नाम अपने खुदगर्जी के जागीर में,
कोई अपना नहीं है इस दुनिया के भीड़ में,
आस्तीन में  खंजर लिए बैठे सब मोके की तहजीर में !

जी तो करता है आज तुम जैसा ही बन जाऊं,
ओर तबाह कर दू तुम जैसे की वजूद को पर ये मुमकिन नहीं ,

तेरा इमान होगा दोलत खुदगर्जी,
पर मेरी तो चाहता हैं आज भी तू वहां से वापस हो जा बन के मेरा मुजरिम ही सही,
देख कैसे गले लगाने तो अब भी बैठा हूँ तुझे तेरे ही हांथों से लुट जाने के बाद फकीर में,
कोई अपना नहीं है इस दुनिया के भीड़ में,
आस्तीन में  खंजर लिए बैठे सब मोके की तहजीर में !!

2 comments:

  1. ajay ji.... bhaut- bhaut thankx for compliment....main pahli baar apke blog par ayi bhut hi khubsurat hai... aur blog naam behad khubsurat...

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