Wednesday, November 16, 2011

में ओर मेरा अस्तिव ....!!

बाहरी परिवेश का दुय्न्द मेरे अंतरात्मा में चल रहा था,
में लड़ रहा था खुद से ओर सवाल पे सवाल ज़ेहन पूछ रहा था,
क्या हूँ में, ओर क्या है मेरा अस्तिव -२
बोझिल मन भी न जाने क्यों, मुझे यही सवाल बार बार कर रहा था !
पर कुछ ऐसे सवाल है जिनके कभी जवाब नहीं होते,
जैसे कुछ किये कर्मो के कभी हिसाब नहीं मिलते,
पर इतना काफी नहीं था मेरे ज़ेहन को समझाने के लिए,
वो तो तैयार था मानो,  ऐसे कई जंग लड़ने के लिए !
इतने पे भी हारा नहीं था में,
हाँ थोडा थक गया था, अहम् ओर अस्तिव की इस लड़ाई से,
जहाँ जिस्म हार चूका था दिमाग ओर दिल की इस रुसवाई से,
वही थोड़ा ठहर कर मैंने मन को समझाया,
ओर उसको अपने साथ मिलाया,
फिर मिलकर हमने के प्लान बनाया,
क्यों ना हम सबको आमने-सामने करवा दे,
ओर साथ ही साथ सभी ज्ञानइन्दारियां के मालिक आत्मा राम को भी ये खबर भिजवा दे,
बड़ा संभल कर ओर मुश्तेदी से हमने ये चाल चल दी,
थोड़े वक़्त में ये खबर जंगल में आग की तरह फिर पुरे जिस्म में फेल गई ,
होना क्या था आत्मा राम की आने की खबर से फिर सब बघियाँ उड़ गई,
पर अब कर भी क्या सकते थे ये, खबर तो आत्मा राम तक पहुँच गई थी ,
ना चाहते हुए भी इनके वो आमने-सामने आ घड़ी आ गई थी,,
सबलोगो के बीच अहम् ओर अस्तिव की आज लड़ाई थी,
खोफ ओर दहशत ने भी मिलकर क्या खूब समा बनाई थी,
शायद इसलिए की आज इस जिस्म की एक ऐतिहासिक लड़ाई थी,
तभी अचानक एक आवाज़ ने सबकी दहशत को शांत किया,
तुम सब अपने हद में रहो आत्मा राम ने ये कह कर सबपे प्रहार किया,
तेरा वजूद मुझसे है ये मत भूलो,
अगर इस जिस्म में रहना है तो मस्त होके बस खेलो और कूदो,
हम सब एक दुसरे के पूरक है, बाहरी परिवेश तो मोके ओर धोखे के बस मूरत है,
चलो हाथ उठाओ और उस आदि शक्ति को याद करो,
ओर बोलो भगवन में ओर मेरे अस्तिव को माफ़ करो , में ओर मेरे अस्तिव को माफ़ करो !!

2 comments:

  1. अच्छी अभिव्यक्ति है अशुद्धियों को ठीक करेंगे तो और सुंदर लगेगी ....
    शुभकामनायें आपको !

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया !! आपकी की दिये सलाह पे कार्य करके इसको ओर बेहतर बनाने की कोशिश करूँगा ... अगर भविष्य में आप जैसों की यूँ ही शुभकामनाये रही तो ऐसा फिर नहीं दुहराऊंगा !!

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